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________________ જૈન યુગ એપ્રિલ ૧૯૫૯ बने प्राचीन मंदिरों के खण्डहर हैं। इनमें से कुछ में टूटी-फूटी मूर्तियाँ भी हैं और कुछ में कोई भी मूर्ति नहीं है। इन जैन मंदिरों में तीस वर्ष पूर्व देखी गई जैन मूर्तियों में से अनेक आज लोप हो गई हैं । लाधुरक के पास का बोरुडीह गाँव पुरुलिया-हूरा सडक के ११ वें मील पर है। इस गांव में पुरुलिया ऐतिहासिक प्रतिष्ठान को अभी अभी ५ जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं जिनमें से तीन ऋषभदेव, चन्द्रप्रभु और पार्श्वनाथ की थीं जैसा कि उन पर के चिह्नों से स्पष्ट ही प्रतीत होता था। शेष दो २४ वें तीर्थकर भगवान महावीर की थीं। यह एक अजीब सी ही बात है कि इस गाँव के एक कुए की कोठी के बांधकाम में एक शिलालेख उपयोग में आया हुआ है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मूर्तियों और शिलालेखोंवाले शिलाखण्डों का द्विधाशून्यजनों द्वारा निर्मुक्त दुरुपयोग किया जाने लगा था और ललितकला और संस्कृति के ये अवशेष इस प्रकार नष्ट किए जा रहे हैं। कुछ पुरातत्त्वावशेषों पर पाल युग का प्रभाव स्पष्ट ही दीख पडता है। -....------ इन लेखों में से कुछ, विशेषतया करचा, भवानीपुर, पालमा, अनाई और बौरुडीह के लेखों में जैनों का सम्भवतया उल्लेख होगा क्योंकि जहाँ शिलालेख उपलब्ध हुए हैं उन स्थानों में अनेक जैन पुरातत्त्वावशेष भी पाए गए हैं। सब से बड़ा शिलालेख निमिडीह रेल स्टेशन के पास के सीमागुण्डा में पाया गया है और उसमें ६ पंक्तियाँ हैं। जिन गाँवों का जिक्र बेगलर ने नहीं किया है उनमें भी उस समय स्पष्टतया एकान्तभावे जैन मूर्तियाँ थीं जब कि उसने सारे जिले की यात्रा की थी। इन जैन पुरातत्त्वों में से कुछ आज भी देखे जा सकते हैं हालाँकि उन पर कलादस्युओं द्वारा पर्याप्त आक्रमण किए जा चुके हैं। ऐसे गाँवों में से प्रमुख गाँव करचा है जो कि पुरुलिया से लगभग ६ मील दूर स्थित है। वहाँ अनेक जैन मूर्तियाँ हैं और ५ पुराने टीवे भी जिनकी खुदाई फलप्रद होने की पूरी पूरी सम्भावना है। भवानीपुर में जोकि करचा से पूर्व की ओर एक मील के लगभग दूर है, जैन तीर्थंकर ऋषभनाथ की मूर्ति के पादपीठ पर एक लेख खुदा पाया गया है। पुरुलिया से पूर्व में लगभग ८ मील दूर के इस भवानीपुर गाँव में जैनों का केन्द्र प्राचीन काल में था। वहाँ की स्पष्ट ही ऋषभनाथकी मूर्ति के दोनों पाश्वों पर २४ तीर्थकरों की मूर्तियाँ उत्कीर्णित हैं और उस में चमर कुमारियाँ, धूपकुमारियाँ और यक्षियों की मूर्तियाँ भी स्पष्ट ही हैं। इस प्रमुख मूर्ति के पार्श्व में ही एक वृक्ष के नीचे लेखक ने चक्रेश्वरीदेवी की भी एक छोटी मूर्ति देखी थी। पास के ही दूसरे वृक्ष के नीचे उसी भवानीपुर गाँव में एक मकर जैसे पशु पर आरूढ व्यक्ति की जैन मूर्ति भी मिली है। आरोही पुरुष के एक हाथ में तलवार है और दूसरे में घंटा। इस मूर्ति का यह वाहन परवान ऐसा भी कोई कोई कहते हैं। परन्तु कुक्कुरवाहन मूर्ति का जैनों में कोई भी वर्णन उपलब्ध नहीं है । इस वृक्ष के नीचे पद्मावती और धरणेन्द्र की भी एक मूर्ति है । ऐसा लगता है कि यह मूर्ति अपने परिपार्श्व से अलग की हुई है। इस पद्मावती और भोट की मर्ति को अब हर-पार्वती की मूर्ति का रूप लोगों द्वारा दे दिया गया है। कसाई नदी पर करचा गाँव से ३ मील दूर पर अनई नाम का एक गाँव है। इस गाँव के आसपास ईटों के यह भी द्रष्टव्य योग्य है कि जो विशिष्टता व्यक्तिगत 'रूप से मुझे इन गांवों में दीख पड़ी थी वह यह है कि इस क्षेत्र में अनेक धर्म साथ साथ ही प्रचलित रहे थे क्योंकि जैन पुरातत्त्वावशेषों के साथ ही साथ सनातनी हिन्दुओं के, महायानी बौद्धों के ही नहीं अपितु वैष्णवधर्म के चिहन और अवशेष भी उपलब्ध हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यह क्षेत्र अत्यन्त ही सर्वमतगुणग्राही था और एक के पश्चात् दूसरा धर्म अपनाता ही रहा था। पुरुलिया से १८ मील दूर, बोरम के निकटवर्ती देउरघाट गाँव में अति सुरक्षित दशा में मूर्तियों की श्रेणियों की श्रेणियां अभी अभी उपलब्ध हुई थीं। ये मूर्तियाँ अधिकांशतया बौद्ध हैं। परंतु यह सम्भव लगता है कि इस क्षेत्र की अधिक खोज, पर्यटन और परीक्षण की जाए तो जैन मूर्तियाँ भी मिल जाएँ क्योंकि कितने ही जैन पुरातत्त्वावशेष इस गाँव के एक मील के घेरे में उपलब्ध हो चुके हैं। यह अत्यन्त ही महत्त्व की बात है कि पुरुलिया-हूग सडक (२१मील) पर जानेवाला आकस्मिक द्रष्टा भी इस सडक पर के प्राय सारेः ही गाँवों में यत्र-तत्र-सर्वत्र जैन मूर्तियाँ पडी देखे बिना नहीं रहेगा। वृक्षों के नीचे, घरों के वराण्डों में जैन मूर्तियाँ बिलकुल ही उपेक्षित रखी है।
SR No.536283
Book TitleJain Yug 1959
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal M Kothari, Jayantilal R Shah
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1959
Total Pages524
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size34 MB
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