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________________ એપ્રિલ ૧૯૫૦ જેન યુગ पकबीरा गांव में चैत्र के महीने में प्रतिवर्ष एक मेला ऐसा अनुमान होता है। माता एक शिशु के साथ है (१)। लगता है। पहले उस मेले में पशुबलि दी जाया करती पिता-प्रतीकात्मक मूर्ति-यज्ञोपवीत पहने हैं । इन दोनों थी। पिछले कुछ वर्षों से जैनों के अध्यवसाय और प्रेरणा के पास ही ७ व्यक्ति और खड़े हैं। इस प्रतीक का सही से यह पशुबलि बंद हो गई है। पुरुलिया और रांची के सही निरूपण करना कठिन है। फिर भी ऐसा लगता है कि प्रमुख जैनी पकबीरा में जैन मंदिर बनाने और वहाँ के यह कदाचित् तीर्थकर के जन्म का प्रतीक हो। जैन पुरातत्त्वावशेषों की सुरक्षा का प्रयत्न कर रहे हैं। वर्षों पड़ोस के गांव, बुधपुर, में भी कितनी ही मूर्तियाँ हैं की उपेक्षा से हुई कलाविध्वंसकों की लीला के बावजूद भी जिनकी प्रति वर्ष साल में एक दिन पूजा होती है। इनमें वहाँ कुछ मूर्तियाँ सुरक्षित दशा में पाई जाती हैं। आज से कुछ जैन नमूनों की मूर्तियाँ हैं। कुछ मूर्तियाँ लोग उठा वहाँ तीन मंदिरों के खण्डहर हैं और लगभग २० मूर्तियाँ __कर ले भी गए कहा जाता है। जो तीन स्थानों में संग्रहीत हैं। मंदिर तो भूमि में दब दारिका नामक एक दूसरे गाँव में जो कि चेवगांवगढ़ गए हैं, परन्तु उनके शिखर बाहर निकले हुए आज भी के खण्डहरों से ३ मील पश्चिम-दक्षिण में है, कितने ही दीखते हैं। कितनी ही मूर्तियाँ भी भूमि में आधी दबी प्राचीन ध्वंसावशेष, तालाव, टीबे और कुटियाँ हैं जो सब पड़ी हैं। एक तो उनमें से ५ हाथ की ऊँची है। यह स्पष्टतया जैन लगती हैं। बेगलर ने यहाँ काले आग्नेय बाहुबलिजी की मूर्ति है। खेद की बात है कि पाषाण की एक जैन मूर्ति देखी थी। वह लिखता है कि बाहुबलिजी की इस मूर्ति में एक दरार पड गई है। गाँव 'चन्दनकियारी से आगे के पहले ही गाँव में काले आग्नेय के लोग इसकी पूजा आज कल भैरोनाथ के रूप में करते पाषाण की जैन तीर्थकर की एक मूर्ति है। यह स्वाभाविक हैं । बाहुबलि की इस मूर्ति के मस्तकाभिषेक करने का भी पद्मासन मुद्रा में है। इसके पादपीठ पर वृषभ का चिह्न प्रबंध किया हुआ है। इस समय तो इस मूर्ति पर तेल, है। यह मूर्ति एक बड़े परन्तु अब सूखे तालाव के तट पर सिंदूर और मालीपन्ना खूब ही बढ़ा है क्योंकि हिन्दू है और यह तालाव मिदनापुर से बनारस जानेवाली पुरानी भैरोनाथ के नाम से इसकी पूजा करते हैं। इन इधर- उस सडक के पास ही है कि जो चास और पारा के बीच उधर बिखरी पड़ी मूर्तियों में से कितनी ही खड्गासनवाली से जाती है।' हैं । इनमें पार्श्वनाथ, महावीर, पद्मावती और ऋषभदेव की मूर्तियाँ भी हैं। ये मूर्तियाँ पुरानी ही दीख पड़ती हैं । ____मानभूम जिले के सदर मुकाम, पुरुलिया, से लगभग कोई-कोई तो उन्हें २००० वर्ष पुरानी भी कहते और ४ मील दूर के गाँव छारी में प्राचीन मंदिरों के ध्वंसावशेष मानते हैं। उनका उत्कीर्ण काम अत्युत्तम है और हैं। इन मंदिरों में से कुछ स्पष्ट ही जैन हैं। उत्सर्गित अधिकांश मूर्तियाँ आज पूर्ण और साबुत हैं । (वोटिव) चैत्य भी वहाँ अनेक हैं जिन पर जैन तीर्थंकरों की भ्रंशित मूर्तियाँ हैं। कहा जाता है कि छोटे छोटे अनेक स्पष्ट ही यह पकवीग गाँव किसी समय जैनों का एक अवशेष यहाँ से उस समय हटा लिये गए थे जब कि द्वितीय महत्त्व का स्थान रहा होगा। इसके पड़ोस के छोटे छोटे कई विश्व महायुद्ध के समय यहाँ पर फौजी छावनी लगी थी। गाँव, यद्यपि उन सब के नाम अलग अलग ही थे परन्तु, इस लेखक ने इस गाँव में कुंथुनाथ, चन्द्रप्रभु, वे सब आज पकबीग में सम्मिलित कर दिए हैं और इस धरणेन्द्र-पद्मावती, ऋषभदेव और महावीर की मूर्तियाँ तरह उनका स्वतंत्र नाम लुप्त हो गया है। इन छोटे देखी थीं। धर्मस्थान नामक पूजा के स्थान में भी भिन्न गाँवों में से कुछ उत्कृष्ट तक्षण काम के पाषाण द्वार-स्तम्भ भिन्न तीर्थकरों को अनेक टूटी फूटी मूर्तियाँ और मस्तकों के हैं। पड़ोस के पंखा नामक गाँव में चार क्षत-विक्षत सुन्दर नमूने उपलब्ध हुए थे। छारी में ५ पाषाण के और मूर्तियाँ हैं जिनमें से एक श्री ऋषभदेवजी की है और १ ईटों का बना मंदिर था। उनमें से अब दो पाषाण के उसके पावों में २४ तीर्थंकरों की मूर्तियाँ खुदी हैं। इसी मंदिर ही अस्तित्व में हैं, परन्तु उनकी भी मूर्तियाँ तो गुम गाँव में एक और भी दुष्प्राप्य चीज है और वह है एक हो ही गई हैं। टूटे मंदिरों के पत्थरों को जैसा कि देश के पाषाण-शिला पर दो हाथ का ऊँचा उत्कीर्णित एक वृक्ष । इस भाग की सामान्य लोकप्रथा है, गाँव के लोगों ने उसके शीर्ष पर एक बालक बैठा है। वृक्षतल में जो दो अपने निजी घर बनाने में उपयोग कर लिया है। पड़ोस मूर्तियाँ हैं वे सम्भवतया उस बालक के मातापिता ही हों के गाँव मानग्रह में एक मूर्ति के दो टूटे टुकड़े पाए गए
SR No.536283
Book TitleJain Yug 1959
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal M Kothari, Jayantilal R Shah
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1959
Total Pages524
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size34 MB
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