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જૈન યુગ
मूर्तियाँ है और ये मूलतः जैन मंदिर ही ये इस चोरम से एक मील दूर दक्षिण दिशा में एक ओर मंदिर है जिसमें यह नम्रता ही इसका स्पष्ट मंदिर को तो अ हिन्दू
नग्न मूर्तियाँ हैं । मूर्तियों की प्रमाण है कि वे जैन है मंदिर मान लिया गया है।
चन्दनकियारी, मानभूम जिले के सदर मुकाम पुरुलिया से कुछ ही मील दूर स्थित गाँव में अकस्मात् कितने ही जैन पुरातत्त्व प्राप्त हो गए थे। इस गाँव में प्राप्त जैन तीर्थकरों की मूर्तियों का जो संग्रह पटना संग्रहालय में है, भारतवर्ष में पाए गए जैन पुरातयों का एक सर्वोत्कृष्ट संग्रह माना जाता है। इन मूर्तियों में से अधिकांश उनके चिह्नों के कारण पहचान की गई हैं, याने वे तीर्थंकरों की ही मूर्तियाँ हैं। कुछ मूर्तियों की आकृतियों ललित कला की दृष्टि से अति रम्य हैं । उनकी कारीगीरी सूक्ष्म और उत्कृष्ट है। ये सब ११ वीं सदी ईसवी की हैं। चन्दनकियारी गांव से पांच मील वाले, कुम्हरी और कुमरदगा, नामक दो गाँवों में भी कुछ प्राचीन जैन मूर्तियाँ हैं। इन दोनों गाँवों में शिलालेख भी मिले थे जिनमें से एक स्थानीय किसी सम्भ्रान्त व्यक्ति द्वारा हडप लिया गया भी कहा जाता है।
मानभूम जिले के अन्य जैन पुरातस्यावशेषों में से विशेष उल्लेखनीय है पकबीर नामक छोटे से गाँव के जैन मंदिर और मूर्तिशिल्प | यह गाँव बड़ा बाजार से उत्तर-पूर्व में २० मील दूर या पुरुलिया-पूंच सड़क से ३२ मील पर है। यहाँ के पुरातत्वों ने सरकार के पुरातत्व विभाग का ध्यान आकर्षित किया था। इस विभाग के तात्कालिक अध्यक्ष जे. डी. बेगलर ने आर्थिक सर्वे ऑफ इण्डिया, भाग ८ में पकबीर के पुरातत्त्वावशेषों के विषय में इस प्रकार उल्लेख किया था :
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यहाँ अनेक मंदिर और मूर्तियाँ हैं जो मुख्यतया जैन हैं । बड़े मंदिर के स्थान पर बने एक झोपडे में मुख्य मुख्य पुरातत्व संग्रहीत हैं। इस बड़े मंदिर की नींव आज भी दीख पड़ती है। यहाँ के आकर्षण की मुख्य वस्तु है एक महान् नग्न मूर्ति जिसके पादपीठ पर चिह्नरूप कमल आकीर्ण है । यह मूर्ति || फुट ऊंची है। इसी के पास और दीवाल के सहारे सहारे और भी अनेक शिल्पाकृतियाँ रखी हैं। दो छोटी मूर्तियों में वृषभ का, एक छोटी अन्य मूर्ति में कमल का चिह्न खुदा है। चारों दिशा में तक्षित किया हुआ एक उत्सर्गित (वोटिव) चैत्य भी है। इसकी चारों दिशा की मूर्तियों के प्रतीक अनुक्रम से सिंह, मृग, नृषभ
અપ્રિલ ૧૯૫૯
और मेष सा कोई पशु है । इस चैत्य की प्रमुख मानवाकृति मूर्तियों के ऊपर ही हंस या बतक हार लिये हुए आकीर्णित है। एक दूसरा उत्सर्गित (वोटिव) चैत्य भी यहाँ है। इन पुरावस्थों के अतिरिक्त और भी पुरातत्व वहाँ हों परन्तु उन्हें मैं देख नहीं पाया। जिस मंदिर में यह भीमकाय मूर्ति प्रतिष्ठापित भी वह पश्चिमाभिमुख होगा और वह बहुत बड़ा भी होगा और उसमें सभी आवश्यक भवन और मूल गर्भगृह के सामने सभामण्डप भी रहा होगा।
इसके उत्तर में पापाण के चार मंदिरों की एक पंक्ति है जिनमें से तीन साबुत और एक का खण्डहर आज मी खड़ा है। ये सब मंदिर एक घुमी के ही है। इनकी उपीढ़ी दो भागों में विभक्त नहीं है। ये और एक ईट का बना सुमंदिर जो अभी अभी ही मैंने देखा है, सब मूलतः एक घुमटी के ही होंगे, परन्तु पीछे किसी भी समय इनमें मण्डप भी बना दिए गए होंगे जो सब टूट-फूट गए हैं । इन मंदिरों के सन्मुख भाग ही आज तक पूरेसूरे बचे है और इन्हीं से न केवल इतना ही पता लग जाता है कि इनमें मण्डप पीछे से जोड़े गए थे, अपितु यह भी स्पष्ट हो जाता है कि ये मण्डप मूल मंदिरों की भींतों के साथ बांधे नहीं गए थे। इनके जोड़ वहाँ भी वे बचे रह गए हैं, बिलकुल सादे है ये सब मंदिर उत्तराभिमुख हैं ।
इस पंक्ति के उत्तर में एक और परन्तु अनियमित पंक्ति मंदिरों की है जिनकी संख्या पांच है। इनमें से दो तो पाषाण के हैं और तीन ईंटों के । ईंटों के मंदिर सत्र ध्वंस हो गए हैं। पाषाण मंदिरों में भी एक ही समूचा खड़ा है।
इसके भी उत्तर में फिर एक बार है, तीन पाषाण के और एक ईंट का ही ध्वंस हो गए हैं।
मंदिरों की पंक्ति परन्तु ये चारों
इन मंदिरों के अतिरिक्त वहाँ कुछ दड़े या टीबे भी हैं जो किसी बड़े मंदिरों के या स्तूपों के भी ध्वंसावशेष हो। कुछ बड़े सरों के अवशेषों में और उनके पड़ोस के कुछ और टीयों में भी जैन परम्परा दिखलाई पड़ती है। यह खेद की बात है कि ये मंदिर एवम् वहाँ बिखरे हुए अन्य पुरातत्त्व सब नष्ट होने दिए जा रहे हैं। इनकी खुदाई जैन संस्कृति के महत्वपूर्ण काल को प्रकाश में खनेवाली भी हो सकती है।