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________________ बिहार के मानभूम जिले में जैन पुरातत्त्वावशेष [ मूल लेखक श्री. पी. सी. राय चौधरी ] अनुवाद श्री कस्तुरमल यांठिया आज हम यह भूल ही गए हैं कि बिहार राज्य के छोटानागपुर प्रान्त का मानभूम जिला कभी जैन धर्म का एक महान् केन्द्र रहा था। भारतवर्ष के अन्य किसी भी जिले में काचित् ही इतने अधिक पुरावशेष हो जितने कि आज तक इस मानभूम जिले में उपेक्षित और यत्र-तत्र सर्वत्र बिखरे हुए पडे हैं। मानभूम जिले में हो कर ही एक समय बंगाल और बिहार दोनों ही राज्यों से उत्कल याने उडीसा राज्य में पहुँचा जाता था । यह तो सर्व विदित ही है कि एक समय जैन धर्म का उड़ीसा पर बहुत भारी अधिकार रहा था । खण्डगिरि गुहाओं के पुरातत्त्व जैन पुरातत्त्वावशेषों के अद्वितीय नमूने हैं । उत्कल याने उड़ीसा का सुविख्यात जैन राजा महामेघवाहन खारवेल गया प्रदेश की वरवर पदादियों तक पहुँच गया था जहाँ उसके चिह्न स्पष्ट ही देखे जाते हैं। मानभूम द्वारा ही बिहार और उड़ीसा का पारस्परिक सम्पर्क था। इस जिले में चारों ओर बिखरे हुए प्रचुर जन पुरातस्याशेष जो आज तक प्राप्त हो रहे हैं, इसका यही कारण होना चाहिए । कि जो बनारस, जगन्नाथपुरी और बंगाल के प्रसिद्ध बंदर ताम्रलिप्सी को आपस में मिलाते थे। आज भी इस जिले में सर्वत्र जैन बसे हुए हैं। मैंने सुविधा के लिए धनबाद का उपजिला भी इसी जिले के अन्तर्गत विधाराले लिया है कि जो अनति काल में एक परिपूर्ण और स्वतंत्र जिला ही वन आनेवाला है। प्राचीन परम्परानुसार भगवान् महावीर धर्म प्रचारार्थ एक समय 'सफ प्रान्त में भी आए थे। ऐसा कहा जाता है कि इस 'सफ' प्रान्त के आदिवासियों ने जो कि बहुसंख्यक थे महावीर का धर्मोपदेश सुनने या उनका अनुसरण करने की अधिक उत्सुकता नहीं दिखाई, इतना ही नहीं अपितु उनने उन्हें अनेक प्रकार से हैरान-परेशान तक भी किया था। परन्तु महावीर भयाक्रान्त हुए बिना अपना धर्म प्रचार वहाँ करते ही रहे थे। अन्त में उनकी घोर तपस्या एवम् स्थैर्य से ये आदिवासी प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं सके एवम् अधिकांश जैन दो ही गए। के एक बलरामपुर, जिसे सामान्यतया पालमा बलरामपुर कहते हैं, ओर जो पुरुलिया से चार मील दूर आज एक गांवमात्र है, कसाई नदी के तट पर है। इस बलरामपुर मंदिर में अनेक जैन मूर्तियां हैं जिनमें कितनी ही तो निःसंदेह जैन तीर्थकरो की हैं। कुछ मूर्तियों पर जैन चिह्न भी हैं जिनसे उनके तीर्थंकरों की मूर्ति होने में कोई भी संदेह नहीं रहता है ये मूर्तियाँ स्वतः पर्यात प्राचीन लगती हैं। इसी गांव में एक शिला पर खुदा लेख भी मिला था जो कि एक स्तम्भ में जड़ा हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि यह शिलालेख कई वर्ष पूर्व लगानी के किसी अधिकारी ने वहाँ से हटा लिया और अब वह कचहरी के आहते में सड़कपार्श्व जड़ा हुआ है। ह्यूएन त्सांग, सातवीं सदी ईसवी का भारत का सुप्रसिद्ध चीनी पर्यटक, कहता है कि उसने एक प्रदेश जिसको वह 'सफ' कहता है, देखा था। जनरल कनिंघम ने लिखा है कि मानभूम जिले के बारभूम परगने का बड़ाबाजार नगर इस 'सफ' प्रदेश का सदर मुकाम था। श्री हिबर्ट ने पटकूम के निकटवर्ती डालमी को 'सफ' प्रदेश का मुख्य नगर अनुमान किया है। डालमी पहाड़ी पर कुछ पुरातन अवशेष हैं जो स्पष्टतया जैन उद्गम के हैं। जिले के इस भाग में एक समय श्रावकों याने जैन गृहस्थों का बड़ा ही दबदबा था। मानभूम जिले के महत्त्व के क्षेत्रों में ये आवक बसे हुए थे और वे ही इस जिले की भूमिज आदिजाति के पूर्व पुरुष थे ऐसा कहा जाता है। अधिकांशतः ये लोग किसी न किसी प्रकार का वाणिज्य-व्यापार ही करते थे । यह मानभूम जिला अन्तर- जिला और अन्तर- प्रान्तीय उन व्यापार मार्गों के लिए महत्त्व का था रेल के भैपुर नामक स्टेशन से दक्षिण ओर चार मील दूर स्थित बोरम गांव में तीन मंदिरों के खण्डहर है कि जो श्रावकों याने जैन गृहस्थों के बनाए हुए कहे जाते हैं। ये तीनों ही मन्दिर आकल्पना में समान हैं। इनमें जैन પર
SR No.536283
Book TitleJain Yug 1959
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal M Kothari, Jayantilal R Shah
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1959
Total Pages524
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size34 MB
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