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________________ ન યુગ माला और बांए हाथ में सोने का कंकन हैं। कमल के आसन पर पद्मासन पर बैठी हुई लक्ष्मीदेवी के शरीरका वर्ण पीला है। कंचुकी लाल, मुकुट स्वर्ण लाल रत्नजडित, उत्तरीय वस्त्र बीच में लाल रंगों के पट्टोंवाला काले रंगका है। लक्ष्मी देवी के कमलासन में ऊपरी तीन कमल है जिनका रंग अलग-अलग दिखाया गया है। सबसे नीचे कमल का रंग पीला, उसके ऊपर कमल का रंग आसमानी और सबसे ऊपर के कमल का रंग गुलाबी है। सूची सचित्र आवृत्तियों में सक्ष्मीदेवी के और भी कई चित्र छ चुके है इस तरह मूर्ति और चित्रकला में लक्ष्मी देवी का सुन्दर अंकन हुआ है । दिगम्बर मन्दिरों में भी लक्ष्मीदेवी की मूर्ति की पूजा की जाती है । पर्युषणों के दिनों में जिस दिन महावीर का जन्म दिवस मनाया जाता है, चांदी और सोने के १४ स्वप्न एक एक कर के आश्रम से ऊपर से नीचे उतारे जाते हैं। प्रत्येक स्वप्नी स्पर्धापूर्वक बोलियों रूपयों यथा भी के रूप में जाती है । उस समय लक्ष्मी देवी की चाहना तो सबको होती है, अतः एव इस स्वप्न के आते ही लक्ष्मी देवी की बोली की होड़ लग जाती है। सबसे अधिक बोली लक्ष्मी देवी के स्वप्न की बोली जाती है। जैन समाज मुख्यतः वैश्य समाज है। वैश्योंका प्रधान ૨૬ નમ્બેમ્બર ૧૯૫૮ व्यवसाय व्यापार होता है और व्यापार मेल क्ष्मी देवी का स्थान माना जाता है । 'वाणिज्ये वसति लक्ष्मी' अतः जैन समाज का लक्ष्मी उपासक होना स्वाभाविक ही है। दीवाली के दिन जैनी लक्ष्मी की पूजा करते ही हैं । जैनाचार्यों के रचित लक्ष्मी देवी के स्तोत्रोंका उल्लेख 'जिन रत्न कोष' में दिया गया है। पहला पद्मदेव रचित, दूसरा पद्मनन्दी रचित और तिसरा अज्ञात कर्तृक है । खोज करने पर और भी स्त्रोतादि साहित्य लक्ष्मी देवी की स्तुति के रूप में रचा हुवा मिल सकता है । वर्तमान जैनाचार्य विश्यप के रचित प्राकृत मी पीठ स्वोत, सरे मंत्र कस्य संदोह में प्रकाशित हो चुका है। इस प्रकार जैन साहित्य और कला में लक्ष्मी देवी का महत्वपूर्ण स्थान है, उसकी याति जानकारी यदी संक्षेप में दे दी गयी है । १ मुनि विशालविरुपी जैन तीर्थों नामक पुस्तक के अनुसार मातर एवं सोजित्रा के जैनमंदिर में लक्ष्मी देवी की मूर्ति है। मातर में तो महालक्ष्मीजी का स्वतंत्र मंदिर भी है। सोजित्रा की महालक्ष्मी की मनोहर मूर्ति सुप्रसिद्ध शेठ मोतीशाह की कुलदेवी होने का कहा जाता है और जैन मंदिरो में भी खोज करने पर लक्ष्मी देवी की मूर्तियां प्राप्त होनी संभव है। TOP BES
SR No.536282
Book TitleJain Yug 1958
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanlal M Kothari, Jayantilal R Shah
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1958
Total Pages82
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size8 MB
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