________________
જૈન યુગ
किनारों वाला, मन प्रसन्न करने वाला देखने वालों के दिल में छाप लगाने वला है।
वह पद्मद्रह एक पद्मवर वेदिका से एवं एक सुन्दर वन खण्ड चारों ओर से घिरा हुआ है। यहां वेदिका और वनखण्ड का वर्णन ग्रन्थ कथनीय है। उस पद्मद्र हकी चारों दिशाओं में चार तीन सीढियों के आसन बने हुए है। उन तीन सीढ़ियों के आसन के सामने प्रत्येक में तोरन लगे हुए है। वे तोरन विविध जाति के मणियों से बने हुए दिखते हैं।
२४
के उस पद्मद्रह बहु मध्यप्रदेश माग में एक बड़ा पद्म रहा है जो एक योजनसम्बाई और चौड़ाई में आचा योजन, मोटाई में दस योजन, जल की गहराई में, दो कोस जल से ऊपर यो सम्पूर्णतया साधिक दस योजना वाला वह पद्म वर्तमान है। उस कमल के चारों ओर किले के समान एक जगती है। वह जगती जम्बूद्विप की जगती प्रमाण जल से ऊपर जाननी चाहिये। उस में लगे हुए गवाक्षों के समुदाय मी उसी प्रमाण से ऊचांई में आधा योजन और विस्तार में ५०० धनुष जितने होते हैं ।
वह पद्म उस प्रकार से वर्णनीय होता है। वज्र की रत्न जडे, अभीष्ट रत्नकन्द, वैडू रनका नाल, वैडूर्य रत्न के बाहरी पने, जाम्बूनद के अन्दर के पने. तपनीय रक्त की स्वर्ण पेराल, विविध मणि रुमो के कमल बीज भाग सोने की कर्णिका, इस कमल में विद्यमान है । कमल की कर्णिका अर्धी योजन लम्बी-चाटी एक कोस मोटी और सर्वकनकमयी सुन्दर है। उस कर्णिका के ऊपर बहुमरमणीय भूमि माग है। उसमें एक श्री देवी का बड़ा मारी भवन आया हुआ है जो एक केस लम्बा, आधा को चौड़ा कुछ कम एक कोस ऊंचा हैं। उसमें सैकड़ों खम्भे हुए है जो प्रासादिक और दर्शनीय है।
उस भवन की तीन दिशा - दक्षिण उत्तर और पूर्व ऐसे तीन द्वार है । वे द्वार ५०० धनुष ऊंचे हैं, २५० धनुष चौड़े उतने ही प्रवेश और विस्तार वाले हैं। श्वेत प्रधान खुटियों में बन मालाएं लगी हुई है। उस भवन के अन्दर बहु समरमणीय भूमि माग में एक मारी मणि पीठिका रखी हुई है जो पांच सौ धनुष लम्भी चोदी, २५० धनुष मोटी. सव मणियों को बनी मुन्दर है । उस मणि पीठिका के ऊपर एक भारी श्रीदेवी की शय्या बिकी हुई है। शय्या का वर्णन भी जानना चाहिये।
નવેમ્બર ૧૯પ૮
ऊपर जो मूल कमल का वर्णन किया है, उसके चारों तरफ उससे आधे प्रमाण वालो १०८ कमलों की पक्ति लगी हुई है। वे कम आयोन सम्बे और चो एक कोस मांटे, दस योजन जल में एक कोस ऊंचे, कुछ अधिक दश योजन उचाईबाट
उन कमलों का विस्तार भी ऐसा है। उनके मूल वज्र के है । यावत् कर्णिका सोने की है। वह कर्णिका एक कोस लम्बी चौड़ी और आधा कोस मोटी, सुवणमयी सुन्दर है । उस कर्णिका के ऊपर बहु समग्मणीय भूमि मार्ग है । वहाँ श्री देवी के मणि श्लो से उपयोगित अलंकार शोभित है। प्रथमो
उस पद्म के परिचत्तोर वायु कोण में, उत्तर में, उत्तर पूर्व ईशान कोण में चार हजार सामाजिक देवताओ के कमल है। पूर्व दिशा में चार सारिवा देवियों के चार कमल हैं। अग्निकूण में श्री देवी की अभ्यन्तर सभा के आठ हजार देवताओं के आठ हजार कमल है। दक्षिण के मध्य परिषद में बैठने वालो दस हजार देवताओं के दस हजार कमल है। नैऋत्य कोण में बाहरी सभा के बाहर हजार देवताओं के बारह हजार कमल हैं। पश्चिम दिशा में सात सेनापतियों के सात कमल है। (द्वितियोवलयः)
उस मूल पद्म के तीसरे घेरे में चारों दिशाओं में चारों तरफ श्री देवी के सालाह हजार आत्मरक्षक देवताओं के सोलह हजार कमल है । (तृतीयो वलयः)
उसी प्रकार उस मूल पद्म के चारों तरफ तीन वलय (चौथा, पांचवां और छड ) हुए है। उनमें अभ्यन्तर मध्यम और बाह्य सभा के अभियौगिकः कर्मचारी देवताओं के निवास स्थान है अर्थात् भीष में बीस लाख और छठे में अड़तालिस लाख कमल लगे हुए है। इन पूर्वार पर तीन घेरों में एक करोड़, बीस लाख कूल कमल होते हैं भगवान्! इसे पद्म नाम से क्यो विशेषत किया है?
1
हे गौतम् । पद्मद्रद के उस देश में बहु से उत्पन्न यावत् महस्त्र पत्र कमल पद्मद्रह प्रभाव से पद्मद्रह वर्णवाले हैं। इसलिए और यहां महधिक श्री लक्ष्म देवी एक पोप की स्थिति वाली रहती है, इसलिए अथवा पद्मद्रह ऐसा शाश्वत नाम है जो कि पहले न था वर्तमान में न हो और भविष्य में न रहेगा ऐसा नहीं है।