SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगे अनुदात्त होने के कारण स्वरित में बदल गया है । 3 यदि दो या दो से अधिक उदात्त सन्नतर अनुदात्त से पूर्व हों तो इन उदात्तों में से प्रथम उदात्त स्वरित हो, जैसे 33 .23 2 शं योरभि स्त्रवन्तु नः (साम. 33) शं. योरभि स्त्रवन्तु नः (ऋ. 10.94) सामवेद में साहितिक स्वर पद्धति इतनी प्रभावी थी कि स्वतन्त्र उदात्त भी स्वरित के रूप में परिवर्तित हो जाता था । आचिक - संहिता की स्वरांकन पद्धति : - साम. की आचिक संहिता में स्वयं के अंकन का प्रकार ऋग्वेद में अंकन के प्रकार से भिन्न हैं। ऋग्वेद, यजर्वेद तथा अथर्ववेद में उदात्त को अनुदात्त को वर्ण के नीचे पड़ी रेखा तथा स्वरित को वर्ण के उपर खडी रेखा से चिह्नित करतें हैं; किन्तु सामवेद में यह पद्धति नहीं है । यहाँ स्वरों को वर्ण के ऊपर अङ्कों के द्वारा चिह्नित किया जाता हैं । उदात्त : सामवेद में उदात्त को वर्ण के ऊपर 1 अङ्क से चिह्नित करते हैं; जैसे त्वं नो अग्ने (त्वं)। जब उदात्त के पश्चात् कोई अनुदात्त वर्ण आये तो उस उदात्त को वर्ण के ऊपर 2 से अङ्कित करते हैं, जैसे अग्ने या याहिं (अ) । इसी प्रकार एक या अधिक उदात्त वर्ण पाद के अन्त में आये तो प्रथम उधात्त को वर्ण 2 के अङ्क से चिह्नित करते हैं और शेष को अचिह्नित छोड़ देते हैं, जैसे महा हि षः (हाँ) । यदि अनेक उदात्त लगातार आये और उनके बाद अनुदात्त वर्ण आता है तो प्रथम उदात्त को चिह्नित करते है और दूसरों को अचिह्नित छोड़ देते हैं, जैसे - त्वमित्सप्रथा (त्व) । जब अनेक उदात्त लगातार आता हैं और उनके बाद स्वरित आता है तो प्रथम उदात्त को वर्ण के ऊपर 1,2 से चिह्नित करते हैं और दूसरों की अचिह्नित छोड़ देते हैं, जैसे - मित्रं ने शशिषम् ("त्र) अनुदात्त : साम. में अनुदात्त को वर्ण के ऊपर 3 के अंङ्क द्वारा चिह्नित करते हैं, जैसे - अग्न आयाहि (ग्न) । स्वतन्त्र स्वरित से पूर्ववर्ती अनुदात्त को 3 क से चिह्नित किया जाता हैं, जैसे - अभ्येति रेभन् (अ) । यदि दो यादों से अधिक अनुदात्त लगातार आते है तो प्रथम अनुदात्त को वर्ण के ऊपर 3 अंङ्क से चिह्नित किया जाता है और शेष को अचिह्नित छोड दिया जाता है, जैसे - जैनिताग्ने (जनि)। स्वरित : साम. की आर्चिक-संहिता में स्वरित स्वर को वर्ण के ऊपर 2 अङ्क से चिह्नित किया जाता है, जैसे अग्नं आ याहि (या) । यदि दो या दो से अधिक उदात्त के बार स्वरित आता है तो उसे वर्ण ऊपर 22 से चिह्नित किया जाता है, जैसे - ब्रह्मी कस्तं संपर्यति (स)। यदि स्वतन्त्र स्वरित से पर्व कोई उदात्त वर्ण न हो और उसके परे अनदात एकति या अवसान हो. तो उस स्वतन्त्र स्वरित को भी वर्ण के ऊपर 2 2 से अङ्कित किया जाता हैं, जैसे अभ्यति रेमन् (भ्ये) । काम्पस्वर : स्वतन्त्र स्वरित के बाद उदात्त या स्वतन्त्र स्वरित आने पर पूर्ववर्ती स्वरित के उत्तर अनुदातांश के उच्चारण में कम्प होता है। साम. की आचिक-संहिता में इस कम्प को चाहे वह हस्व हो या दीर्घ हो 3 के अङ्क द्वारा दिखाया जाता है। इस में जिस वर्ण पर स्वतन्त्र स्वरित से पूर्व अनुदात्त हो तो स्वतन्त्र स्वरित के ऊपर 2 का अङ्क लगाते है । जैसे पाह्यूस्तै । किन्तु यदि स्वतन्त्र स्वरित उदात्त सामवेद में स्वर-सिद्धान्त पद्धति विषयक निरूपण ૩૩ For Private and Personal Use Only
SR No.535843
Book TitleSamipya 2007 Vol 24 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Mehta, R T Savalia
PublisherBholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
Publication Year2007
Total Pages125
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Samipya, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy