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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ राजपाट सब त्याग प्रभुवर, संयम को अपनाते हैं। मोह शत्रु को परास्त कर के, आतम ज्योति जगाते हैं। अनिष्ट हटाने फिर भारत का, सत्यामृत बरपाय दीया। वीरप्रभु महावीर जिन्होंन, अधर्म का विध्वस कीया |सत्य०॥८॥ है आर्य शिरोमणि भारतवासी, सोचो और विचारो तो। सव को सुख पियारा है, फिर कीसको दुःख वताओ तो।। सव प्राणी में निज सम आतम, इस का नहीं कुछ शान कीया । वीर प्रभु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीया ॥सत्य०॥९॥ सय जीवों को अपना जीवन, अधिक पियारा लगता है। जैसा दुःख अपने को होता, वैसा उनको होता है । धर्म नाम पर उनका जीवन-धन फिर क्यों बरवाद कीया ? | वीर प्रभु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीया ।सत्य० ॥१०॥ अधर्म में नहीं धर्म मनाओ, सत्य वस्तु अब पहिचानो। अधर्म कार्य का प्रायश्चित करके, ऐसा शब निश्चय टानो ॥ निज समान है सर्व आतमा, यही तत्व समझाय दीया । वीर प्रभु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीया ।सत्य०॥११॥ हनन को कहते हैं, हिंसा, नहीं हनने में रही अहिंसा । सत्य धर्म है यह भारत का, हननार्थक सब मिथ्या है। भारत गुरु उन इन्द्रभूति का, संशय सर्व मिटाय दीया । वीर प्रमु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीया ॥सत्य०॥१२॥ सर्वशिरोमणि इन्द्रभूति थे, और भी थे पटधर ग्यारा। सब का संशय सर्व मिटा कर, शिष्य बनाया है प्यारा ॥ हिंसा चक्र का अस्तित्व मिटाकर, अहिंसा का प्रचार कीया। वीर प्रभु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीया ।सत्य॥१३॥ सब प्राणी को अभयदान दें, पापों से मुक्त कराया है । भेद भाव सब दूर हटा कर, सब को फिर अपनाया है ।। हिंसा वृत्ति पशु तक की हटाकर, एक जगह बैठाय दीया । वीर प्रभु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीय। सत्य०॥१४॥ . अहिंसा धर्म से फिर भारत को, प्रभुने श्रेष्ठ बनाया है । भारत का सब पाप नष्ट कर, मिथ्या तिमिर हटाया है। . नर्क हुई थी भारतभूमि, इस को स्वर्ग वेनाय दीया । वीर प्रभु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीया ।सत्य१५॥ : न । For Private And Personal Use Only
SR No.533704
Book TitleJain Dharm Prakash 1944 Pustak 060 Ank 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1944
Total Pages36
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size12 MB
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