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(तर्ज-खूब लड़ी मरदानी वह तो, झांसीवाली रानी थी.) वीरप्रभु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीया । सत्य ज्ञान का रवि प्रकटा कर, मिथ्यातम को नष्ट कीया ॥ टेक० ॥ धर्म नाम पर मूक पशु, जब यज्ञ में होमे जाते थे। यज्ञ याज्ञ में धर्म बताकर, विप्रवर्ग हरखाते थे । एसे समय में वीरप्रभु का, क्षत्रीवंश में जन्म हुचा । वीरप्रभु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीया ॥सत्य०॥९॥ सिद्धार्थ दुलारे त्रिशलानंदन, बर्द्धमान कहलाये हैं। चरम तीर्थकर शासननायक, वल्लभ विश्व कद्दाये है ॥ बाल्यकाल में खेल देव संग, देवों को भी परास्त कीया । चीरप्रभु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीया ॥सत्य०॥२॥ वीर धीर गम्भीर प्रभु का, अभिषेक महोत्सव करते हैं । शंका इन्द्र की दूर हटाने, मेरगिरि कम्पाते हैं। महापराक्रमी जान प्रभु का, महावीर ! फिर नाम दीया ।। चारप्रभु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीया ॥सत्य०॥३॥ धर्म नाम पर पशु संहार लख, वीर अति दुःख पाये हैं। भारतवासी धर्म भुलाकर, पापों में लिपटाये हैं । भारत की यह देख परिस्थिति, निश्चय मन में शीघ्र कीया । वीरप्रभु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीया सत्य०॥॥ इन्द्रभूति और अग्निभूति, इस धर्म के ठेकेदार हुवे । स्वर्ग मोक्ष का सर्टिफिकीट भी, देने को तय्यार हुवे ॥ वेदों की उस सत्य स्मृति का, अर्थ नहीं अनर्थ कीया ।
वीरग्रभु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीया ।सत्य०॥५॥ • यज्ञ याश का करनेवाला, हो धर्मी कहलाया था।
यज्ञ यान से विमुख हुवा, वह पापी माना जाता था ।। एसें समय में यश धर्म ही, राष्ट्र का धर्म बनाय दीया । वीरप्रभु महावीर जिन्होंने, अधर्म का विध्वंस कीया ॥सत्य०॥६॥ जहां देखो यहां विप्र बगेरे, यशों की धूम मचाई थी। परम पुनित इस भारत भू पर, रक्तों की नदी बहाई थी । इसी पाप को शीघ्र हटाने, वीर प्रभु का जन्म हुवा । वीर प्रभुमहावीर जिन्होने, अधर्म का विध्वंस कीया ॥सत्य०॥७॥
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