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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www મુનિ શ્રી પુણ્યવિજયજી શ્રદ્ધાંજલિ-વિશેષાંક [ वैसे तो आपने अनेकों महत्वपूर्ण ग्रन्थोंकी प्रेस-कापियां करवा रखी है और कुछका तो संशोधन-सम्पादन भी कर रखा है। पर सबसे महत्वपूर्ण कार्य आपका जैनागमोंके सुसम्पादित संस्कारणोंके प्रकाशनका है। मूल आगमोंका प्रकाशन महावीर जैन विद्यालय बम्बईसे प्रारम्भ हो गया है। पर अभी तक केवल नन्दी, अनुयोगद्वार और प्रज्ञापना तीन आगमसूत्र ही प्रकाशित हो सके हैं। पैंतालीस मूल आगमोंके साथ-साथ आपने उनपर प्राप्त नियुक्ति, चूर्णि, भाष्य एवं टीकाओंका भी प्राचीन प्रतियोंसे मिलाकरके संशोधन कर रखा है। उन सबके प्रकाशनमें काफी समय और अर्थ चाहिए। पर आप सदा यही कहा करते कि मुझे इसकी चिन्ता नहीं है। अच्छे काम के लिए पैसा तो मिलता ही रहेगा। प्राकृत साहित्य परिषदकी (प्राकृत देष्ट सोसायटीकी) स्थापना भी आपके प्रभाव व प्रेरणासे हुई थी, जिसमें बीसों महत्वपूर्ण ग्रन्थ छप चुके हैं । ला. द. भारतीय संस्कृति बिद्यामंदिरसे भी काफी छपे हैं। आपका दूसरा महत्वपूर्ण कार्य सेठ कस्तूरभाई लालभाई द्वारा स्थापित और संचालित भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर है, जिसे सर्वप्रथम आपने अपने द्वारा संग्रहीत करीब दस हजार हस्तलिखित प्रतियां देकर शोधके लिए महत्वपूर्ण संस्थाकी स्थापना करवाई। फिर तो अन्य कई भण्डार भी इस संस्थाको मिले और मुनिश्रीकी देखरेखमें बहुत-सी मूल्यवान सामग्री खरीदी भी गई । फलतः आज करीब चालीस हजार हस्तलिखित प्रतियोंका यह बड़ा संग्रहालय हैं, जिनमें बहुत-सी कलापूर्ण प्राचीन मूर्तियाँ एवं चित्रकलाकी सामग्री भी दर्शनीय हैं। वर्षांसे बड़े प्रयत्नपूर्वक जिन प्रतियोंका संग्रह किया था, उन सबको इस तरह दे देना कितनी बंडी उदारता व विशाल हृदयता है। इनके अतिरिक्त भी आपके संग्रहमें हजारों फुटकर पत्र. गुटके, विशिष्ट प्रतियाँ और महत्वपूर्ण सामग्री है, जिसका ठीकसे उपयोग किए जानेसे अनेकों नवीन तथ्य प्रकाशमें आएंगे। आशा है, मुनिश्रीके बडे परिश्रम व सूझबूझसे एकत्र की हुई समस्त सामग्री सुरक्षित एवं सुव्यवस्थित की जाएगी। अच्छा हो, उनके नामसे एक बडी संस्था स्थापित हो, जो उनके अधूरे कामोंको पूरा करे, महत्वपूर्ण सामग्रीको प्रकाशमें लाए और सबको उसका लाभ मिल सके, ऐसी व्यवस्था करें। बम्बईके समाचारोंके अनुसार आपके अन्तिम दर्शनके लिए ४०००० जनता उमड पडी थी । अनेक बाजार ता. १४ जूनको बन्द रहे । आपकी श्रद्धांजलि-सभामें आपके कार्योंको आगे बढानेके लिये एक फण्ड स्थापित करनेका निश्चिय किया गया, जिसमें ५०००० तो उसी समयलिखा दिए गए है। वास्तवमें नामानुरूप आप तो बडे ही पुण्यशाली थे । जीवनभर ज्ञानदान देकर व सबको उचित सहयोग देकर आपने महान पुण्यका अर्जन किया। उनका कार्य इतना ठीक एवं महत्वपूर्ण है कि युग-युगों तक आपकी याद बनी ही रहेगी। ___ "राष्ट्रवीणा" मासिक, अहमदाबाद; अगस्त, १९७१ સ્વ. મુનિ શ્રી પુણ્યવિજ્યજી श्री प्रिया મુ. શ્રી પુણ્યવિજયજીને સંશોધન કાર્ય માટે અનહદ રસ હતો. પોતાને સંગ્રહણીનું દર્દ હોવા છતાં, અને તે વખતે પાટણનું પાણી તેમની તબિયતને અનુકૂળ નહતું તોપણ, સંશોધનકાર્ય માટે લાગલાગટ For Private And Personal Use Only
SR No.531809
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 071 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Atmanand Sabha Bhavnagar
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1973
Total Pages249
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size94 MB
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