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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir મુનિ શ્રી પુણ્યવિજ્યજી શ્રદ્ધાંજલિ-વિશેષાંક [७४ ज्ञानभण्डारोंकी हजारों ताडपत्रीय और कागजकी प्रतियोंके अवलोकनसे प्राचीन लिपियों, भाषाओं और लेखनशैलियों आदि महत्वपूर्ण विषयोंकी जानकारी बढ़ी । अहमदाबादके श्री साराभाई मणिभाई नवाबका जैन चित्रकल्पद्रुम नामक महत्वपूर्ण ग्रन्थ सं. १९८८२ में प्रकाशित हुआ । इसके प्रारम्भमें "भारतीय जैन श्रमण संस्कृति अने लेखनकला' नामक एक महत्वपूर्ण करीब डेढ़ सौ पृष्ठोंका गुजरातीमें आपका रचित निबन्ध प्रकाशित हुआ, जो अपने ढंगका एक ही निबन्ध है। इस विषयमें उतनी जानकारी और किसी भी विद्वानने आज तक नहीं दी, क्योंकि इसके लिए वाँका श्रम और अनुभव अपेक्षित है। इस निवन्धका हिन्दी व अंग्रेजी अनुवाद होना वांछनीय है । समय-समय पर आपने कई ग्रन्थोंकी प्रस्तावना आदिके रूपमें और भी ज्ञानवर्धक और शोधपूर्ण निबन्ध लिखे हैं, जिनका एक संकलन आपके दीक्षा-पर्यायके साठ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्यमें बडौदासे प्रकाशित 'ज्ञानांजलि' नामक ग्रन्थमें किया गया है। आपके सम्पादित करीब चालीस ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं और अनेकों ग्रन्थ तैयार पडे हैं, जिनमेंसे कुछ तो छप भी गए, पर प्रस्तावना आदिके लिए प्रकाशित नहीं हो पाए । एसे ग्रन्थोंमें जैसलमेर और पाटण भण्डारकी हस्तलिखित ग्रन्थसूची विशेष रूपसे उल्लेखनीय है। सत् १९१७ से लेकर अब तक निरन्तर आपका सम्पादनकार्य चलता रहा । 'बृहत्कल्पसूत्र' नियुक्ति-भाष्य-वृत्ति सहित छः भाग, कर्मग्रन्थ छ: भाग, वसुदेवहिण्डी, अंगविज्जा, कथारत्नकोष, धर्माभ्युदय महाकाव्य, त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित्र महाकाव्य, नन्दी-अनुयोगद्वार, पन्नवणा, आख्यानकमणिकोश आदि जैन ग्रन्थोंके अतिरिक्त सोमेश्वरकृत उल्लाघराघव नाटक और रामशतक आदि जैनेतर नाटकों तथा कौमुदीभित्रानन्द, प्रबुद्ध राहिणेय, धर्माभ्युदय आदि जैन नाटकोंका भी आपने सम्पादन किया है। खम्भातके ताडपत्रीय जैन भण्डार सूचीके दो भाग और अन्य अहमदावादके लालाभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिरके विवरणात्मक सूची-पत्र तीन भाग आपके सम्पादित प्रकाशित हो चुके हैं। आचार्य हरिभद्रके योगशतक और उसकी खोपज्ञ टीका नामक अज्ञात ग्रन्थकी भी आपने खोज ही नहीं की, बल्कि संपादन करके प्रकाशित भी करवा दिया । हजारों जैन-जैनेतर (बौद्ध-वैदिक) अलभ्य और दुर्लभ ग्रन्थोंको आपने जैन ज्ञानभण्डारोंसे खोज निकाला, जिनकी किसीको जानकारी नहीं थी। ___ अपने दादागुरुकी अस्वस्थता एवं दीर्घायुके कारण आपको उनकी सेवामें अठारह वर्ष पाटणमें रहनेका सुयोग मिला तो आपने वहाँ कई ज्ञानभण्डारोंका एकत्रीकरण करके 'श्री हेमचन्द्रसूरि ज्ञानमन्दिर की स्थापना की। उसमें सैकडों ताडपत्रीय और बीस हजारसे भी अधिक कागज पर लिखी हुई महत्वपूर्ण प्राचीन प्रतियाँ हैं। इसके बाद आप जैसलमेर पधारें तो वहाँके अव्यवस्थित ज्ञानभण्डारको बड़े परिश्रमसे व्यवस्थित किया । रातको बारह बजे तक आप निरंतर आगम आदि मुद्रित प्रन्थोंको ताडपत्रीय प्रतियोंसे मिलाकर संशोधित करते । आपने अनेकों ग्रन्थोंकी प्रेसकापियाँ करवा ली एवं प्राचीन और महत्वपूर्ण २१४ प्रतियोंको तो दिल्ली भेजकर माइक्रोफील्म करवा ली गई, जिससे जहाँ कहीं भी उनका उपयोग हो सके । ताडपत्रीय प्रतियोंके साईजके ही अलमोनियमकी पेटियाँ बनाई गई। दर्शनीय प्रतियोंको शो-केसमें रखा गया और एक-एक पन्नेको देखकर नई सूची तैयार की गई। हमारे प्राचीन साहित्यकी सुरक्षा और सुव्यवस्था कैसी करनी चाहिए, इसका उदाहरण मुनिश्रीने जैसलमेरमें उपस्थित किया है। काश, हम उससे शिक्षा ग्रहण करके अन्य स्थानोंके ग्रन्थभण्डारोंको For Private And Personal Use Only
SR No.531809
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 071 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Atmanand Sabha Bhavnagar
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1973
Total Pages249
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size94 MB
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