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२०८]
શ્રી આત્માનંદ પ્રકાશ मुनि नथ-आज कल आप क्या कर रहे हैं ?
मुनि पुण्य–मै वर्तमान में टीकाओं और चूर्णियों की प्रतियों का संशोधन कर रहा हूं । आप जानते हैं कि जो चूर्णियाँ और टीकाएं मुद्रित हुई हैं वे अत्यन्त अशुद्ध हैं। बहत स्थानों पर तो अनर्थ सा हो गया है। मैं मानतो हूं, यह कार्य महत्त्व का है और इसे प्राथमिकता देनी चाहिए ।
मुनि नथ-यह बहुत आवश्यक कार्य है। आपने यह कार्य हाथ में लिया है यह प्रसन्नता का विषय है। जब हम दशवकालिक और उत्तराध्ययन पर कार्य कर रहे थे, तब हमें ऐसा लगा कि मुद्रित चूर्णियों का पाठ अशुद्ध है। निर्णय करने में भी हमें बहुत कठिनाइयाँ महसूस होती थी। हम पूर्वापर का अनुसन्धान करते, टीकाओं तथा संवादी स्थलों का निरीक्षण करते और तत्पश्चात् किसी एक निर्णय पर पहुंचते । फिर भी इन मुद्रित प्रतियों के सहारे अधिक चलना पड़ता था। हमने कई बार ऐसा सोचा कि इन चूर्णि-टीकाओं का पहेले संशोधन किया जाए, किन्तु इस कार्य को, साधन-सामग्री की सुलभता न होने के कारण, वैसा कर नहीं सके । आपने यह कार्य प्रारम्भ किया है। मैं मानता हूं कि आप जैन वाङमय की बहुत बडी सेवा कर रहे हैं।
मुनि नथ-आप इस आगम-कार्य में कब से लगे हुए हैं ? मुनि पुण्य-लगभग पचीस वर्षों से मैं इसी कार्य में संलग्न हूं। मुनि नथ-क्या आप पत्र-पत्रिकाए' भी पढते हैं?
मुनि पुण्य-नहीं, विशेष रूप से मैं आगमों में ही रचा-पचा रहता हूं। वे ही मेरे लिए पत्र-पत्रिकाएं हैं। हो, यदा-कदा कोई विशेष निबन्ध आ जाए तो पढ़ लेता हूं।
मुनि नथ-आप कितने घन्टे कार्य करते हैं ? मुनि पुण्य-समय की कोई मर्यादा नहीं। मैं सारा समय इसी कार्य में लगाता है। मुनि नथ-क्या आप व्याख्यान भी देते हैं ?
मुनि पुण्य-निरन्तर नहीं, किन्तु आजकल चातुर्मास के कारण प्रतिदिन व्याख्यान देता हूं। लगभग ५-७ व्यक्ति तथा २० ३० बहिने सुनने आती हैं। मैं केवल आगम का वाचन ही करता हूं, उनकी लम्बी चौडी व्याख्याएं नहीं करता, अत्यन्त संक्षिप्त व्याख्या करता हूं । वे ही लोग व्याख्यान सुनने आते हैं जिन्हें मूल ग्रन्थों के स्वाध्याय की रुचि है। मेरी प्रसिद्धि वक्ता के रूप में नहीं है। लोग मुझे अनुसंधाता के रूप में अवश्य जानते हैं । ____ मुनि नथ-आपके साथ कितने मुनि कार्य संलम है ?
मुनि पुण्य-मैं अकेला ही हूं । मुझे बडा आश्चर्य होता है कि बहुत सारे मुनियों का आगम-कार्य में रस है ही नहीं। उन्हें यह कार्य जंजाल सा लगता है। इसमे' जो रसानुभूति कर सके वे विरले हैं । मुझे इसमें बहुत आनन्द मिलता है। इस कार्य के आगे दूसरे सभी कार्य मेरे लिए गौण हैं। मैं अकेला जितना कर सकता हूं वह मैंने किया है। कुछ पण्डित भी काम करते हैं। इस प्रकार जैन साहित्य की यत्किंचित सेवा हो जाती है। आपके पास तो इस विषय में रस लेने वाले (हमारी ओर संकेत करते हुए) इतने सारे मुनि हैं। आपकी एक पूरी टीम इस कार्य में संलग्न है। दूसरी बात यह है कि मेरा कार्य तो सीमित है, किन्तु आपका कार्य विशाल है। आप आगों का अनुवाद, टिप्पण आदि का कार्य करते हैं । मैं अकेला इतना कर नहीं सकता। ..मुनि नथ- आपने अकेले में जितना कार्य किया है, कर रहे हैं, वह बहुत विशाल और महत्त्वपूर्ण है।
आचार्य श्री ने आगम-कार्य के लिए एक सुव्यवस्थित टीम तैयार की है और अनेक साधु-साध्वियों को इस कार्य में नियोजित कर अन्यान्य साधु-साध्वियों में आकर्षण पैदा किया है। हमारे तेरापन्थ में एक आचार्य, एक नेतृत्व का ही यह सुपरिणाम है कि हम जिस किसी कार्य के लिए अनेक-अनेक कार्यकर्ता जुटा सकते हैं। आपका कार्य भी हमारे आगम कार्य का ही संपूरक है। हमें इससे अपने कार्य में काफी सुगमता मिलती है।
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