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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir મુનિ શ્રી પુણ્યવિજ્યજી શ્રદ્ધાંજલિ-વિશેષાંક [२०७ मुनि पुण्यविजयजी से मिलन लेखक : पूज्य मुनि श्री दुलहराजजी [समन्वय व जैन एकता के पावन स्वर मुखरित करने वाले महामना आचार्य श्री तुलसी के बारे में हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यालोचक व चिन्तक आ० हजारीप्रसाद द्विवेदी के भक्त कवि तुलसीदास के बारे में कहे शब्द अक्षरशः सत्य है : भारतीय जीवन व संस्कृति में लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय कर सके । आचार्यप्रवर की समन्वयसाधना का ही एक ज्वलन्त अध्याय विविधपंथी धार्मिक नेतृवर्ग से स्नेहमिलन के ये अनुपम दृश्य प्रस्तुत करते है। -सम्पादक ] ____ अहमदाबाद जैन संस्कृति का केन्द्र है। यहां अनेक जैन विद्वान् रहते हैं, जिन्होंने जैन शासन की प्रभावना के लिए रात दिन प्रयत्न किया है और आज भी अपनी अपूर्व मेधा से सारे वातावरण को प्रभावित कर रहे हैं। __ आचार्यश्री ने इस वर्ष का चातुर्मास अहमदाबाद में बिताना निश्चित किया उसके पीछे यह एक कारण भी विद्यमान रहा है कि यहां की जैन संस्कृति से निकट का परिचय प्राप्त किया जाए और आगम-अनुसंधान-कार्य में तत्रस्थ साधन-सामग्री का उपयोग किया जाए। आचार्य श्री १६ जुलाई को अहमदाबाद पधारे । दूसरे ही दिन आपने सन्तो से कहा कि-"हमे यहां त्रिविध कार्य करना है __ “१–जैन समन्वय की भावना को गतिशील बनाने के लिए विविध जैन सम्प्रदायों तथा उपसम्प्रदायों के अधिकारी मुनि और श्रावकों से विचार-विनिमय । “२-विभिन्न वर्गो में नैतिकता की प्रतिष्ठापना के लिए विविध आयोजन । "३-आगम-अनुसंधान-कार्यकी विभिन्न प्रवृत्तियों में रस लेने वाले विद्वानों से निकट संपर्क स्थापित कर विचार-विनिमय ।” इन तीन उद्देश्यों को लक्ष्य कर विविध गोष्ठियाँ तथा आयोजन हुए। एक दिन आचार्य श्री ने कहा-“ हमें यहां मुनि पुण्यविजयजी से मिलना चाहिए। वे आगों का कार्य बहुत वर्षों से कर रहे है। उनकी कार्यपद्धति से तथा उनके प्राप्त अनुभवों से लाभ उठाना चाहिए । हमारे प्रति उनकी सहृदयता सराहनीय है। स्वर्गीय श्री मदनचन्दजी गोठी ( सरदारशहर ) के माध्यम से वे अपने यहां चल रहे आगम-कार्य से परिचित है, किन्तु प्रत्यक्ष विचार-विनिमय का यह प्रथम अवसर है । मुनि नथमलजी ने भी उनसे मिलने की बात मुझ से कई बार कही थी। किन्तु इधर आना नहीं हो सका। कई बार उनको इस ओर भेजने की बात सोचता था। किन्तु अन्यान्य कार्य-बहुलता से उन्हें यहाँ नही भेज सका। इस बार सलक्ष्य यहां आना हुआ है, तो उनसे अवश्य मिलना चाहिए।" .... एक दिन निकाय-सचिव मुनि श्री नथमलजी आदि सात सन्त मुनि पुण्यविजयजी के ज्ञान-मन्दिर में गए। हम वहां मध्याह्न के लगभग दो बजे पहुंचे। उस समय मुनिजी अन्य कार्य में लगे हुए थे। हमें देख वे कार्य को छोड आए और हमे अन्दर ले गए। एक छोटा सा हाल था। किन्तु वह भी पुस्तकों से संकुल था-चारों ओर पुस्तको का अम्बार सा लगा हुआ था। यत्रतत्र थोडा-थोडा अवकाश अवश्य था, जहां व्यक्ति सुखपूर्वक चल-फिर सकता था। । औपचारिक बातचीत के पश्चात् मुनि श्री नथमलजी ने कहा-“ आज जब हम स्थान से चले तब आचार्य श्री ने कहा-मुनि पुण्यविजयजी जन वाङमय की बहुत बडी सेवा कर रहे हैं और उनके इस कार्य से बहुतों को प्रेरणा मिली है। हमारे कार्य में भी उनका यथेष्ट सहयोग रहा है।" । For Private And Personal Use Only
SR No.531809
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 071 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Atmanand Sabha Bhavnagar
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1973
Total Pages249
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size94 MB
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