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आगमप्रभाकर पुण्यविजयजी रचयिता-अज्ञात चरणसेविका श्रीमती कुसुम जैन (कच्छ कोटडी), अमरावती
पूज्यवर ! श्रुतिपथसे आये। महिमा जब जानी सेवाकी, अति ही आप सुहाये । आगम-वाद्य पडा अब सूना, तुम बिन कौन बजाये ? शासनका तम दूर किया तब, ज्ञान-प्रभाकर छाये ! श्रद्धा-'कुसुम' हैं अर्पित प्यारे, मम जियरा भर आये । इति तक रही अभागिन स्वामी, मैंने दर्श न पाये।
पूज्यवर ! श्रुतिपथसे आये !!
पुण्यश्लोक प्रिय पुण्यविजयजी रचयिता-शोकातुर, विनयावनत प्यारेलाल मूथा (साहित्य सुधाकर, काव्यभूषण), अमरावती
पुण्यश्लोक प्रिय पुण्यविजयजी ! क्योंकर हमको छोड चले ? भूल क्षमा कर देना प्रियवर ! क्यों हमसे मुख मोड चले ? जिन-आगमकी अब मंजूषा, बंद हुई तव जानेसे; खूब पिलाया शासनको वो, अमृत प्याला फोड चले । छाई थी अज्ञान अमा तब, ज्ञान-प्रभाकर थे मुनिराज; यहाँकी चाह, स्वर्गने चाही, स्वर्गसे नाता जोड चले। कितनी करु प्रशंसा गुरुवर, जिनशासन अनमोल रतन; शासनके वरदायी रहना, अष्ट करम झंझोड चले । जिनवरबिंब जिनागम वल्लभ, पुण्यविजय आनंदसागर; लो श्रद्धांजलि ! मानस मुक्ता, 'प्यारे' रिश्ता तोड चले !!
આગમ-પ્રભાકર પુણ્યવિજ્યજીને ત્રિપુટી અંજલિ
(डा03) રચયિતા–ડો. ભાઈલાલ એમ. બાવીશી, પાલીતાણા
(२) ' આગમ પ્રભાકરે
પુણ્ય-વિજય શાસ્ત્રોના ગ્રંથ, तन-श!!
પુણ્યપ્રભાવે, शान-मभृत पाता, જ્ઞાન-રશ્મિ વેરતો,
ઉદ્ધાર અજ્ઞાની, श्रद्धा प्रेरता! . गणे!
वियत !
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