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શ્રી આત્માનંદ પ્રકાશ
अध्ययन के बाद आपका लक्ष्य ज्ञान और उसमें भी विशेषकर प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथो के उद्धार का बना । अध्ययन के क्रम में ही उन्होंने "वसुदेवहिन्डी' जैसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ का संपादन किया। प्राचीन ग्रन्थों और आगमों का संशोधन एवं सम्पादन वे अपनी ७६ वर्ष की आयु में भी उसी उत्साह और लगन के साथ करते रहे । स्वयं अनेक ग्रन्थों का सम्पादन और संयोजन किया,
और अपने निर्देशन में अन्य विद्वानों द्वारा भी करवाया। उनकी सबसे बडी देन जैन आगमों के लिए विद्वानों को तैयार करने की है। अनेक विदेशी विद्वानों को भी इस दिशा में मार्गदर्शन किया। कलास ब्रुन जैसे जर्मन के प्रसिद्ध विद्वानों को उनका मार्गदर्शन और सहयोग प्राप्त था। __गुजरात में पाटण का ज्ञान-भण्डार, खंभात और लिम्बडी के ज्ञान-भण्डार और अन्य अनेक छोटे छोटे ज्ञानभण्डारों का व्यवस्थित आकलन और संकलन आपश्री ने किया । जैसलमेर जैसे प्रदेश में डेढ वर्ष तक रहकर, निरन्तर १६-१७ घण्टों का परिश्रम करते हुए, आपने वहाँ के उद्धार का कार्य किया।
विदेशों में प्राच्य विद्या के संशोधनकार्य में आपका महान् योगदान है और उसीकी कृतज्ञता स्वरूप हाल ही में अमेरिकन ओरेयण्टल सोसायटी के मानद मंत्रीने मुनिश्री को अभिनन्दन भेजा।
प्राचीन भारतीय साहित्य के संशोधन, संपादन और रक्षण के लिए मुनिश्री ने ही प्रेरणा देकर सेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई द्वारा "लालाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर" की स्थापना करवाई। प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी और श्री महावीर जैन विद्यालय की आगम-प्रकाशन योजना के तो वे प्राण ही थे । गुजराती साहित्य परिषद, अहमदाबाद अधिवेशन के इतिहास विभाग और सन १९६१ की आल इंडिया ओरियण्टल कान्फरन्स के प्राकृत विभाग के वे अध्यक्ष रह चुके थे। . सतत साधना में संलग्न रहकर ज्ञान की अखंड आराधना करनेवाले ऐसे महान सन्त का अचानक दिनांक १४-६-७१ को बंबई में दिवंगत हो जाना एक ऐसी क्षति है जो न केवल जैन समाज की ही अपितु साहित्य और संस्कृतिक्षेत्र की क्षति है। उन्होंने ज्ञान की जो ज्योति जगाई है उसे निरन्तर जलते रखना और उनके कार्य को आगे बढाना हम सबका कर्तव्य है।
हम भारत जैन महामण्डल और "जैन जगत" परिवार की ओर से मुनिश्री को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
"जैन जगत" मासिक (भारत जैन महामण्डल का मुखपत्र), बम्बई; जुलाई, ११७१
આગમપ્રભાકર મુનિ શ્રી પુણ્યવિજયજી श्री वीन्द्र मह, भभूमि' पत्राना मध्य प्रतिनिधि, महा६.
પૌરસ્ય જ્ઞાનના પંડિત, પ્રાચીન જ્ઞાનભંડારે અને જ્ઞાનગ્રંથના ઉદ્ધારક તથા ભારતીય પ્રાચીન ભાષાઓના એક પ્રખર વિદ્વાન, અદ્વિતીય સંશોધક, પ્રજ્ઞા, શ્રદ્ધા, કર્મનિષ્ઠા તથા ધર્મનિષ્ઠાના પ્રતીક, આગમપ્રભાકર મુનિ શ્રી પુણ્યવિજયજી મહારાજના ગમે મહિને થયેલા દેહાવસાન સાથે હેમચંદ્રસૂરિની કક્ષાને એક મહાન આત્મા આપણી વચ્ચેથી ચાલ્યો ગયે છે.
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