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॥ श्रीजिनाय नमः ।।
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THE JAINA ANTIQUARY. जैनपुरातत्व और इतिहास-विषयक त्रैमासिक पत्र
भाग २
जून से अगस्त १९३५ तक ज्येष्ठ से श्रावण वीर नि० २४६१ तक
भास्कर-स्वागताष्टक
(ले०-५० हरनाथ द्विवेदी, काव्य पुराणतीर्थ, सम्पादक “हितैषी”)
शुचि रुचि के रुचिर रसीले, रंग में रंग कर रँगराते । भ्रम-तोम-तिमिर-जालों को, आभा से दूर भगाते ।।
निर्मल-निगमाम्बुजराजी, मदु मञ्जुल को विकसाते । भारत-श्रुत-भव्य-भवन को, भासित करते हैं पाते ।