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भास्कर
दलने को पाखण्ड लोक का, करने को जग का उद्धार, प्रकट हो रहा ! विश्व-गगन में, दिनकर-सम यह वीर कुमार। विघट गयी हिंसा की रजनी, गया अनेकों का अभिमान, हुए सभी हर्षित तब इससे, बनी भूमि यह स्वर्ग-समान ।
___ (पं० गुणभद्र जी) श्रीमान् बाबू छोटेलाल जी के सहज सौजन्य से प्राप्त
THE S.P. W
ARRAR.