________________
किरण ३ ]
वैद्य-सार
३१ - ज्वरादौ महाज्वरांकुशरसः
शुद्धसूतं विषं गंधं धूर्तबीजं त्रिभिः समम् ॥ सर्व चूर्ण द्विगुगव्योषं चूर्णं गुंजप्रमाणकम् ॥१॥ घटकं भृंगनीरें कारयेश्च विचक्षणः ॥ महाज्वरांकुशो नाम ज्वरान्सर्वान् निकृन्तति ॥२॥ पकाहिकं द्वयाहिकं वा त्र्याहिकं च चतुर्थकम् ॥ विषमं वा त्रिदोषं वा हंति सत्यं न संशयः ॥३॥
टीका -- शुद्ध पारा, शुद्ध विष, शुद्धगंधक, एक एक भाग, बराबर बराबर तथा शुद्ध धतूरे के बीज तीन भाग, सब के चूर्ण से दूना सोंठ, मिर्च, पीपल का चूर्ण मिलाकर घोंट लेवे। फिर इस रस की एक एक रती के बराबर भंगरा के स्वरस में गोली बनावे ।, यह महाज्वरांकुश रस अनुपान भेद से सब प्रकार के ज्वरों को तथा एकाहिक, ह्याहिक याहिक और चतुराहिक त्रिदोषज आदि सब ज्वर को नाश करता है
1
४० - उदररोगे शंखद्राव:
स्फाटिक्यं नवसारकं च लवणं तुल्यं च भागत्त्रयम् ॥ सार्धं भूलवणं हितं द्रवमिद्वैतद् भैरवीयंत्रके ॥१॥ मर्त्यापीतमिदं भगंदरमजीर्ण मुदरादिशुलादिकम् ॥ शंखद्राव वराभिधानमुदरे भूतान् रोगान् हरेत् ॥२॥
२६
टीका - फिटकरी, नौसादर सेंधानमक ये बराबर बराबर लेकर १ || भाग कलमी शोरा सम्मिश्रण कर भैरवयंत्र के द्वारा शंखद्राव निकाले । इसके पीने से भगंदर, अजीर्ण, उदरशूल आदि प्रनेक उदर रोगों का नाश होता है ।
४१ – विबंधे जयपालयोगः
-
जयपालस्य च बीजानि पिप्पली च हरीतकी ॥ तत्समं शुल्वचूर्ण तु बज्रीक्षीरेण भावितम् ॥१॥ मरिचप्रमाणगुटिकां तांबूलेन च मर्दयेत् ॥ उष्णोदकेन वमनं शीतलेन विरेचनम् ॥२॥