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भास्कर
टीका-शुद्ध जमालगोटा के बीज, पीपल, बड़ी हर्र को छिलका, बड़ी हर्र के बराबर ताम्रभस्म इन सबको थूहर के दूध की भावना देवे तथा पान के रस के साथ काली मिर्च के बराबर गोली बांध लेवे। इसको गर्म पानी से सेवन करने से बमन होता है तथा शीतल जल के साथ खाने से विरेचन होता है।
४२--शीतज्वरे शीतकेशरीरमः हिंगुलं टंकणं गंधं सूतं पुनः गंधकं ॥ विषं तुत्य कांतशिलाबोलतालनवसागरं ॥१॥ .. . कारवल्लीरसे पिष्ट्वा मर्दयेद्याममात्रकम्॥ वणमानवटी कुर्यात् गुड़मिश्रं तु सेवयेत् ॥२॥ चातुर्थिकज्वरं हंति पथ्यं दयोदनं हितम् ॥
सितेभकेशरी नाम पूज्यपादेन निर्मितः ॥३॥ टीका-शुद्ध सिंगरफ, सुहागा, शुद्ध गंधक, शुद्ध पारा, शुद्ध विष, तुत्य भस्म, क्रांतलौह भस्म, शुद्ध शिला, शुद्ध बोल, शुद्ध तवकिया हरताल और शुद्ध नौसादर ये सब चीजें बराबर बराबर तथा गंधक दो भाग लेकर करेले के रस में एक प्रहर घोंट कर चना के बराबर गोली बनावे। इसको पुराने गुड़ के साथ सेवन करने से सब प्रकार का ज्वर नाश होता है। इसका पथ्य दहीभात है।
४३-शीतज्वरे शीतांकुशरसः तुत्थं पारदटंकणे विषवली स्यात् खर्परं तालकं ॥ सर्व खल्वतले विमर्थ गुटिकां स्यात्कारबेल्ल्याः द्रौः॥ गुंजैकप्रमितः सुशर्करयुतः स्याजीरकैर्वा युतः॥
एकद्वित्रिचतुर्थकज्वरहरः शीतांकुशो नामतः ॥१॥ टीका-शुद्ध तृतिया भस्म, शुद्ध पारद, शुद्ध सुहागा, शुद्ध विष नाग, शुद्ध गंधक, शुद्ध खपरिया, शुद्ध तवकिया हरताल इन सबों को लेकर खल में करेले के रस से मर्दन करके एक एक रत्ती प्रमाण गोली बनावे। मिश्री और जीरे के साथ एक एक गोली देने से सब प्रकार के विषमज्वर दूर होते हैं।