SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 381
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ भास्कर [भाग २ यामद्वयात् समुद्धृत्य तद्गोलं ताम्रपानके ॥ आच्छाद्यैरंडपश्च यामार्धेनोप्णतां व्रजेत् ॥२॥ धान्यराशौ न्यसेत् पश्चात् पंचाहात्तं समुद्धरेत् ॥ सुपेष्य गालयेद्वलो सत्यं वारितरं भवेत् ॥३॥ कन्याभृङ्गीकाकमाचीमुंडीनिगुडिकानलम् ॥ . कोरटं वाकुची ब्राह्मी सहदेवी :पुनर्नवा ॥४॥ शाल्मली विजया धूर्तद्रवैरेषां पृथक् पृथक्॥ सप्तधा सप्तधा भाव्यं सप्तधा त्रिफलोद्भवैः ॥५॥ कषाये घृतसंयुक्तं ताम्रपाने क्वचित् क्षणे॥ त्रिकुटस्त्रिफला चैला जातीफललवंगकम् ॥६॥ एतेषां नव भागानि समं पूर्व रसंक्षिपेत्॥ लिह्यान्माक्षिकसर्पिभ्या पांडुरोगमनुत्तमम् ॥७॥ स्वयमग्निरसो नाम क्षयकासनिकृन्तनः॥ अर्व्यपादप्रकथनः सर्वरोगनिकृन्तकः ॥८॥ टीका-शुद्ध पारा १ भाग, शुद्ध गंधक २ भाग इन दोनों की कजली करे तथा कजली के बराबर शुद्ध तीक्ष्ण लोह का चूर्ण लेवे फिर सबको घीकुवांरी के स्वरस से २ पहर तक घोंटे और गोला बनाकर तांबे के संपुट में बंद करके ऊपर से एरंड के पत्ते से आच्छादन करके ॥ घंटे तक आंच देवे जिससे यह औषधि गर्म हो जाय फिर वह संपुट धान्य की राशि में रख देवे तथा ५ दिन तक धान्य राशि में रहने के बाद निकाले और अच्छी तरह पीस कर कपड़ा से छान ले। पश्चात् जल में डालकर देखे, यदि जल के ऊपर तैर जाय तो सिद्ध हुमा समझे। तदुपरांत घीकुवारि (गवारपाठा) मोगरा, मकोय, मुंडी, नेगड, (सम्हालू) चित्रक, कुरंट, वाकची, ब्राह्मी, सहदेवी, पुनर्नवा, सेमल, भांग, धतूरा इन सबके काढ़े से या स्वरस से अलग अलग सात सातभावना देवे तथा उसमें थोड़ा घी मिलाकर ताम्मे के बर्तन में क्षण भर के लिये रक्खे फिर सोंठ, मिर्च, पीपल, त्रिफला छोटी इलायची जायफल, लौंग इन सबका चूर्ण और सब के बराबर ऊपर कहा हुआ अग्निरस लेकर घी तथा मधु के साथ सेवन करे तो पांडुरोग शांत होता है एवं क्षय खांसी को भी इससे लाभ होता है। यह सब रोगों को नाश करनेवाला पूज्यपाद स्वामी का कहा हुआ उत्तम योग है। नोट-यह ऐसा योग है कि इस योग में इसी प्रकार से लौह भस्म हो जाता है-वेद्य महानुभाव संदेह न करें।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy