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________________ भास्कर [ भाग २ कारण वहीं पर उसका प्रसङ्ग है पश्चात् सूत्र नं० २६, २७ में पक्ष-वचन का समर्थन करने से आगे के कथन से उसका संबन्ध संगत हो जाता। ग्रन्थकार का ऐसे क्रम की उपेक्षा करके सूत्रनिर्माण में परीक्षामुख से भेद दिलाने के अतिरिक्त क्या प्राशय था सो समझ में नहीं आता। इसके आगे भी क्रमभंग किया है । नं० २८ का सूत्र वास्तव में अपने स्थान पर अनुपयुक्त है, कारण कि उसका संबन्ध सूत्र नं. ३३ के साथ अधिक है इसलिये सूत्र नं० २६, ३०, ३१, ३२ को क्रम से २८, २९, ३०, ३१ नं० पर लिखकर नं० ३२ पर हो उसे लिखा जाना चाहिये, ऐसा करने से सूत्रों का क्रम इस प्रकार हो जाता है पक्षहेतुवचनात्मकं परार्थमनुमानमुपवारात् ॥ २३-३॥ प्रत्यक्षपरिछिन्नार्थाभिधायि वचनं पदार्थं प्रत्यक्ष परप्रत्यक्षहेतुत्वात् ॥२४॥ यथा पश्य पुरःस्फुरत्किरणमणिखण्डमण्डिताभरणभारिणीं जिनपतिप्रतिमाम्॥२५-३॥ साध्यस्य प्रतिनियतधर्मिसम्बन्धताप्रसिद्धये हेतोरुपसंहारवचनवत् पक्षप्रयोगोऽप्यवश्यमाश्रयितव्यः ॥२६-३॥ त्रिविधं साधनमभिधायैव तत्समर्थनं विदधानः कः खलु न पक्षप्रयोगमङ्गीकुरुते ॥२७-३॥ हेतुप्रगोगस्तथोपपत्त्यन्यथानुपपत्तिभ्यां द्विप्रकारः ॥२८-३॥ सत्येव साध्ये हेतोरुपपत्तिस्तथोपपत्तिः, असति साध्ये हेतोरनुपपत्तिरेवान्यथा. नुपपत्तिः ॥२६-३॥ यथा कृशानुमानयं पाकप्रदेशः सत्येव कृशानुमत्वे धूमवत्वस्योपपत्तेः, असत्यनुपपत्तेर्वा ॥ ३० -३॥ अनयोरन्यतरपयोगेणैव साध्यप्रतिपत्तो द्वितीयप्रयोगस्यैकत्रानुपयोगः ॥३१-३॥ पक्षहेतुवचनलक्षणमवयवद्रयमेव परप्रतिपत्तेरङ्गन दृष्टान्तादिवचनम् ॥ ३२--३॥. न दृष्टान्तववनं परप्रतिपत्तये प्रभवति तस्यां पक्षहेतुवचनयोरेव व्यापारोपलब्धः ॥ ३३--३॥ पाठक देखेंगे कि यह क्रम कितना संबद्ध बन जाता है ! आगे इस लेख में आवश्यकतानुसार इन सूत्रों के नं. इसी क्रम से दिये जायेंगे। इन सूत्रों में पदों को असंगतता व निरर्थकता भी पायो जाती है। सूत्र नं० २४ में "परार्थ" पद नहीं देकर यदि 'प्रत्यक्ष पद के आगे “अपि" शब्द का प्रयोग करके “परार्थ" पद का अर्थ निकाला जाता तो अधिक संगत होता। सूत्र न० २६ में "असति साध्ये हेतोरनुपपत्तिरेवान्यथानुपपत्तिः" इस के स्थान में सूत्रत्व की दृष्टि से "असति त्वनुपपत्तिरेवान्यथानुपपत्तिः" पेसा पाठ ही संगत जान पड़ता है। "साध्ये हेतोः" इतने अंश का इसी
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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