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________________ १३६ भास्कर [ भाग २ अब अपनी दयनीय दशा का कच्चा चिट्ठा कह सुनाया । विजयनगर के साम्राज्य - शासक ने इनकी दुरवस्था पर तरस खा इन्हें आश्वासन एवं अभयदान देकर अपने यहाँ रख लिया । बल्कि उनके वंश का प्रकृत पता लगा कर उस स्वभाव-सुन्दरी उक्त कुमारी से अपनी शादी भी करली । इस नवविवाहिता स्त्री के गर्भ से विजयनगर साम्राज्य - शासक को तिम्मण्ण राय और कामि राय नामके दो पुत्ररत्न उत्पन्न हुए । इन दोनों लड़कों के रक्षण, भरण एवं पोषण बड़ी सतर्कता के साथ हुए। बाद इन दोनों भाइयों के तरुण हो जाने पर इनकी मौसी विधवा ने राजा से निवेदन किया कि हमसबों ने अत्यन्त अपमानित होकर आपकी शरण ली थी। हम सबों के सौभाग्योदय से आप जैसे माननीय सहृदय शासक की छत्रछाया में रहकर इस समुन्नतावस्था को प्राप्त करने की सुविधा उपलब्ध हुई । मुझे इन दोनों बच्चों को साथ लेकर अपनी जन्मभूमि का दर्शन की हार्दिक उत्कण्ठा हो रही है - आशा है कि आप मेरी यह विनीत प्रार्थना स्वीकृत करेंगे । राजा ने यह प्रार्थना सहर्ष कबूल करली । और इन दोनों लड़कों को उस विधवा के साथ उनकी जन्मभूमि को भेजकर मंगळूरु प्रान्त के कुछ हिस्से बड़े लड़के तिम्मण्ण राय और कुछ हिस्से छोटे लड़के कामि राय को देकर इन्हें अपने अपने प्रान्तों का शासक बना दिया। बल्कि अधिक स्नेहभाजन होने की वजह से अपने छोटे लड़के इन कामि राय को कुछ अधिक हिस्सा दिया । इसके बाद बड़े लड़के तिम्मण्ण राय एणूरु में और छोटे कामि सय नन्दावर में भिन्न भिन्न दो राजधानी बनाकर सुख से रहने लगे। बड़े तिम्मण राय का वंश अजिल और छोटे कामि राय का वंश बंग के नाम से प्रसिद्ध हुए । इन दोनों के वंशज आज भी मौजूद हैं। अभी तो ये जनी हुई हैं किन्तु ऐतिहासिक प्रमाणों से सिद्ध होता है कि यह वंश पहले हिन्दू था ।* अन्त में मैं विजयनगर के सम्बन्ध में सुहृद्वर बाबू हीरालाल जी एम०ए०, एल०एल०, बो० का मत नीचे ज्यों का त्यों उद्धृत किये देता हूँ : "इस वंश के नरेश यद्यपि हिन्दू थे पर जैनधर्म की ओर उनकी दृष्टि सहानुभूतिपूर्ण रहती थी । इसका बड़ा भारी प्रमाण बुक्क राय का वह शिला लेख है जिसमें उनकी बड़ी सहृदयता के साथ जैनियों और वैष्णवों के बीच सन्धि स्थापित करने का विवरण है। बिजयनगर के हिन्दू नरेशों के समय में राज्यघराने के कुछ व्यक्तियों ने जैनधर्म स्वीकार किया था । उदाहरणार्थ हरिहर द्वितीय के सेनापति के एक पुत्र व 'उग' नामक एक राजकुमार जैन धर्मावलम्बी हो गये थे । ( 'मद्रास व मैसूर प्रान्त के प्राचीन जैनस्मारक' की भूमिका पृष्ठ १४ ) * इस वंश का यह विशेष वक्तव्य ( कैफियत ) “सुवासिनि" सम्पुर : संचिके १ में देखें ।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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