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________________ .१३४ [ भाग २ के समय में भी मौजूद थे। इनके द्वारा नानार्थ रत्नमाला नामक एक संस्कृत पद्यात्मक कोष रचे जाने की बात मिलने से यह ज्ञात होता है कि यह इरुगप्प संस्कृत के भी एक अच्छे मर्मज्ञ विद्वान् थे । इन्होंने विजयनगर में भी श्रीकुन्थनाथ तीर्थङ्कर का एक मन्दिर निर्माण कराया था । हरिहर राय (सन् १३३६ - १३५०) ने तुळु जैनराजाओं को जो वंश-परम्परा से राज्य शासन करते चले आते थे निष्कण्टकता एवं निर्भीकतापूर्वक शासन करने का अधिकार दे दिया था। बल्कि इन आदर्श- शासक हरिहर राय की ओर से तुळु जैन राजाओं को अपने जैनराज्य में सभी अधिकार मिले थे । १३७६ - १४०४ ) ने जिस प्रकार कदरे के मञ्जुनाथ, कान्तावर के कान्तेश्वर आदि जैनेतर देवस्थानों को जागिर दी थी उसी प्रकार मूड़विद्री के जैनगुरुबसदि को भी दी थी। शक सम्वत् १३२६ के मूड़विद्री के गुरुबसदि के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि द्वितीय बुक्क राय ने इस बसदि (मन्दिर) को भूदान दिया था। सुप्रसिद्ध देव राय द्वितीय (सन् १४२९ - १४५१) ने हट्ट गडि के चन्द्रनाथ देवालय, मूडबिद्री के त्रिभुवनतिलक चैत्यालय वारंग के नेमिनाथ मन्दिर आदि इस जिले के कई जैनचैत्यालयों को जागीर दी थी - यह बात वहाँ के भिन्न भिन्न शिलालेखों से सिद्ध होती है । द्वितीय हरिहर राय (सन् भास्कर ख्रिस्त शक १४३१ - ३२ में कार्कल के शासक भैरवराय के सुपुत्र वीर पाण्ड्य ने कार्कल में जो लोक विख्यात बाहुबली स्वामी की मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई थी उस प्रतिष्ठासमारोह में द्वितीय देव राय भी सम्मिलित हुए थे । वीर पाण्ड्य ने आपका बड़ा सम्मान किया था । विजयनगर के एक शासन से विदित होता है कि उक्त देव राय ने विजयनगर में भी पार्श्वनाथ स्वामी का एक मन्दिर बनवाया था। इनके समय में विजयनगरसाम्राज्य बहुत ही उन्नतावस्था में था। इटली के पर्यटक निकोलोकोन्टो और पर्शिया के राजा कक्कलियन के राजदूत अब्दुल रज़ाक इन दोनों ने देव राय के राज्यविभव को अपने अपने यात्रा-विवरणों में बड़े सुन्दर ढंग से चित्रित किया है। उस समय विजयनगर राजधानी साठ माईल के घेरे में फैली हुई थी । इनके यात्राविवरण से यह भी विदित होता है कि द्वितीय देव राय का राज्य कृष्णानदी से कन्याकुमारी तक विस्तृत था पर्व तत्कालीन विजयनगर के शासक भारतीय राजाओं में अधिक शक्तिशाली थे । अस्तु इसी राजवंश के द्वितीय विरूपात राय (सन् १४६५ - १४७१ ) ने भी मूडबिद्री वाले त्रिभुवनतिलक चैत्यालय को जागीर दी थी । विट्ट पाडि के बल्लाल के सहोदर भाई के घर पर के एक शासन से ज्ञात होता है कि सलुववंशीय नरसिंह के छोटे भाई इम्मड नरसिंह ने सन् १४९० में चिह्न पाडि के हलर बसदि (मन्दिर) में जागीर दी थी ।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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