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किरण 1
जैन-मूर्तियों और अब शास्त्रार्थ की रीति भी बदल गई है। यही कारण है कि जैन मुद्रायें अब देखने को नहीं मिलती। डॉ. हार्णले साहब को पंजाब से ऐसी मुद्रायें मिली थों और कनिंघम साहब ने भी जैनस्तूपों के नीचे वैसी मुद्रायें पाई थीं। किन्तु उनपर जिनप्रतिमा के चित्र बने होते हैं या नहीं; इस विषय में कुछ भी निश्चयरूप में नहीं कहा जा सकता, जबतक कि प्राप्त मुद्राओं का अध्ययन न किया जाय ! हाँ, सिन्ध-उपत्यका से जो प्राचीन मुद्रायें मिली हैं उनमें कायोत्सर्ग प्रतिमायें बनी हुई हैं और वह ठीक वैसी ही हैं कि जैसी जिनप्रतिमा होतो हैं'। यदि उन मुद्राओं का सम्बन्ध जैन धर्म से प्रमाणित हो सके, जिसका होना बहुत कुछ संभव है, तो यह कहा जा सकता है कि मुद्राओं पर जिन-प्रतिमा बनती थीं उनपर धार्मिक चिह्न तो निःसन्देह होते थे। __ उपलब्ध जिन-प्रतिमाओं पर एक दृष्टि डाल लेना भी उचित है। इन्हें हम तीन भागों में विभक्त करना उचित समझते हैं (१) उत्तर भारतीय (२) दक्षिण भारतीय और (३) पूर्व भारतीय ! जैनसम्राट ऐल खारवेल के समय अथवा उनके भी पहले से जैनधर्म के केन्द्र इन्हीं तीन प्रदेशों में थे। मथुरा, पटना, उज्जैन और काञ्चीपुर जैनधर्म के प्राचीन केन्द्र हैं। इन्हीं केन्द्रस्थानों के अधीन उनके आसपास श्रावकों का होना स्वाभाविक है
और उनपर वहां के देश और लोगों का प्रभाव पड़ना प्राकृत संगत है। उत्तर भारतीय प्रतिमाओं में हम संयुक्त प्रान्त से गुजरात तक और उधर पंजाब तक की प्रतिमाओं को लेते हैं। ये प्रतिमायें प्रायः एक समान देखने को मिलेंगी। 'एक समान' से हमारा मतलब मुखाकृति, शरीर-गठन आदि से है। वैसे स्वरूप में जिन-प्रतिमा सर्वत्र एक-सी ही रही मिलेगी। पंजाब में तक्षशिला आदि से प्राप्त जिन-प्रतिमाओं पर गांधार-शिल्प का प्रभाव पड़ा कहा जा सकता है। किन्तु उत्तर भारत की प्राचीन मूर्तियाँ मथुरा की बनी हुई कही जा सकती हैं और वे वर्तमान की प्रतिमाओं से शरीर-आकृति आदि में विलक्षण हैं। दक्षिण भारत की जिनमूर्तियाँ भी उत्तर भारत की मूर्तियों से शिल्प
9 Proceedings of the Asiatic Society of Bengal, Sept., 1884.
२ Arch : Survey Reports, vol. III p. 157, vol. X p. 5 and vol. XI pp. 35-39. __ ३ रा० ब० मि० रामप्रसाद चन्दा ने यह सादृश्य अंग्रेजी के प्रसिद्ध पत्र "माडर्नरिव्यू" के अगस्त १६३२ के अंक में एक लेख लिखकर प्रकट किया है। वह लिखते हैं कि ऋषभजिन की कायोत्सर्ग मूर्ति से सिन्धु-मुद्राओं पर की मूर्तियाँ बिल्कुल सादृश्य रखती हैं। (It will be seen that the pose of this image ('Iinage of Rishabha) closely resembles the standing dieties on the Indus seals.' p. 159). . ४ हमारी 'भगवान महावीर' नामक पुस्तक देखो।