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________________ भास्कर [ भाग २ - "कर्णाटक कविचरिते" के द्वितीय भाग से ज्ञात होता है, हमारे यह कल्याणकीर्तिजी निम्नलिखित प्रन्थों के भी रचयिता हैं : (१) ज्ञानचन्द्राभ्युदय (२) कामनकथे (३) अनुप्रेते (४) जिनस्तुति (५) तत्त्वमेदाष्टक (६) सिद्धराशि। इन ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय क. कविचरिते के मान्य सम्पादक ने अपने ग्रन्थ में दे दिया है। इस कवि का लिखा हुआ संस्कृत भाषाबद्ध एक यशोधरचरित एवं कन्नड में फणिकुमार-चरित भी हैं। यशोधरचरित की श्लोक सं० १८५० और रचना-समय शक सं० १३७५ है। इस प्रन्थ का आधार गन्धर्व कवि का प्राकृतग्रन्थ है और इसकी रचना पाण्ड्य नगर (कार्कल) के गोम्मटेश्वर चैत्यालय में हुई थी। फणिकुमार. वरित का प्रणयनकाल शक सं० १३६४ है। ताड़पत्राङ्कित ये दोनों प्रन्य भवन में मौजूद हैं। भवन के संगृहीत ताड़पत्राङ्कित “चिन्मय-चिन्तामणि" नामक कन्नडपद्यात्मक लघुकलेवर प्रन्थ भी संभवतः इन्हीं कल्याणकीर्ति का हो। (८) ग्रन्थ नं.२७ षड्दर्शन-प्रमाण-प्रमेयानुप्रवेश कर्ता-शुभचन्द्र - विषय-न्याय भाषा-संस्कृत चौडाई ४।। इञ्च लम्बाई ८। इञ्च . पत्रसंख्या २४ मङ्गलाचरण साधनन्तं समाख्यातं व्यक्तानन्तचतुष्टयम् । त्रैलोक्ये यस्य साम्राज्यं तस्मै तीर्थकृते नमः॥ मध्य भाग (पूर्व पृष्ठ १० पंक्ति ३य) अपरं च द्रव्यतत्त्वादिनित्यद्रव्यवृत्तयोंऽत्याविशेषाः अयुतसिद्धानामाधाराधेयभूतानां यः सम्बन्धः इहेदं प्रत्ययहेतुः स समवायः। प्रत्यक्षलैङ्गिके वे एव प्रमाणमिति वैशेषिक
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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