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किरण ३ ]
दर्शनसमासः । सांख्यैस्तु वत्सनिजबुद्ध्या परिकल्पितोऽयं निवृतिनगर्योः पन्थाः । यदुत पञ्चविंशतितत्त्वपरिज्ञाना निःश्रेयसाधिगमः । तत्त्र भयो गुणाः । सत्त्वं रजस्तमश्च । तत्र प्रसादलाघवप्रसवानभिषंगद्वेषप्रीतयः कार्य सत्वस्य । शोकतापस्वेदस्तम्भोगप्रद्वेषाः कार्य रजसः । मरणसाधनबीभत्सदैन्यगौरवाणि तमसः कार्यम् । ततः सत्वरजस्तमसां साम्यावस्था प्रकृतिः सैव प्रधानमित्युच्यते ।
प्रशस्ति :
प्रशस्ति-संग्रह
जयति शुभचन्द्रदेवः कण्डूगणपुण्डरीकवनमार्त्तण्डः । चण्डविदण्डदूरो राद्धान्तपयोधिपारगो बुधविनुतः ॥
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इस लघुकलेवर ग्रन्थ में विद्वद्वर शुभचन्द्रदेव ने षड्दर्शनों के प्रमाण और प्रमेय का संक्षिप्त परिचय दिया है। शुभचन्द्र नाम के कई विद्वान् हुए हैं। "दिगम्बर जैन ग्रन्थकर्त्ता और उनके ग्रन्थ" के अनुसार निम्न लिखित पाँच (?) शुभचन्द्र के नाम उपलब्ध होते हैं:
(१) शुभचन्द्राचार्य (ज्ञानार्णव के कर्ता--जीवनकाल ११वीं शताब्दी*) (२) शुभचन्द्रभट्टारक (जीवनकाल वि० सं० १४५०) (३) शुभचन्द्र ( प्रसिद्ध पाण्डव-पुराणादि अन्यान्य कई ग्रन्थों के कर्त्ता - जीवन काल वि० सं० १६८०) (४) शुभचन्द्राचार्य (संशयिवदनविदारण के कर्ता- जीवन काल ) (५) शुभचन्द्र ( करकराडु महाराजचरित्र आदि जीवन - वि० सं० १६११) पाण्डवपुराणादि के कर्त्ता भट्टारक शुभचन्द्र का जीवनकाल प्रेमी जो के उक्त ग्रन्थ में वि० सं० १६५० लिखा हुआ है। किन्तु यह समय मुझे भ्रमपूर्ण मालूम होता है। क्योंकि पाण्डवपुराण की निम्नाङ्कित प्रशस्ति से यह बात स्पष्ट ज्ञात हो जाती है कि उनका समय वि० सं० १६०८ है :
"श्रीमद्विक्रमभूपतेर्द्वि कहतस्य षष्ठे संख्ये शते (?) रम्याष्टाधिकवत्सरे सुखकरे भाद्र द्वितीयातिथौ ।
श्रीमद्वाग्वरनीवृतीदमतुले श्रीशाकवाटे पुरे
श्रीमच्छ्रीपुरुधानि च विरचितं स्थेयात्पुराणं चिरम् ॥
पाण्डवपुराण के कर्त्ता से भिन्न नहीं है ।
इससे यह भी विदित होता है कि करकराडु महाराजचरित्र के रचयिता शुभचन्द्र क्योंकि जीवनकाल में केवल तीन वर्ष की दूरी प्रारंभ में प्रेमी जी के द्वारा लिखित
*रायचन्द्र जैनशास्त्रमाला में प्रकाशित ज्ञानार्णव "श्रीशुभचन्द्राचार्य का समय निर्णय" के आधार पर ।