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________________ किरण ३ ] इतिहास का जैनग्रन्थों के मंगलाचरण और प्रशस्तियों से घनिष्ठ सम्बन्ध १०७ साधु राजन सुधिया कीर्त्तश्विरस्थापकम् ॥८॥ तिस्रस्तस्यैव भार्या गुणचरितजुषस्तासु रल्हाभिधाना पत्नी धन्याचरित्रा व्रतनियमयुता शीलशौचेन युक्ता । दात्री देवार्चनाढ्या गृहकृतिकुशला तत्सुतो कामरूपो दाता कल्याण सिंहो जिनगुरुचरणाराधने तत्परोऽभूत् ॥६॥ लक्षणश्री द्वितीयाभूत्सुशीला च पतिव्रता । कौशीरी च तृतीयेयमभूद्गुणवती सती ॥१०॥ शान्तिर्देशस्य... भूत्तदनु नरपतेः सुप्रजानां जनानाम् वक्तणां वाचकानां...... . तथैव । ......ll यावत्कूर्मस्य पृष्ठे भुजगपतिरयं तत्र तिष्ठेद्गरिष्ठे - यावत्तत्रापि चञ्चद्विकटफणिफणामण्डले तोणिरेषा । यावत्क्षण समस्त त्रिदशपतिवृतश्चारुचामीकराई - tarai विशुद्ध' जगति विजयतां काव्यमेतच्चिराश्च ॥ १२ ॥ कायस्थपद्मनाभेन बुधपादाज्जरेणुना । कृतिरेषा विजयतां स्थेयादा चन्द्रतारकम् ॥१३॥ अथ सम्बत्सरेऽस्मिन् श्रीविक्रमार्कगतान्दः सम्बत् १८१२ वर्षे विक्रमभूपान्दानां द्विइन्दु वसुइन्दुवत्सराक्रान्ते मार्गशीर्ष कृष्ण ४ रबौ पुनर्वसु नक्षत्र शुक्कुनामयोगे श्रीमूलसंघे वलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दाचार्याम्नाये भट्टारक श्रीदेवेन्द्रकीर्त्तितत्पट्टे भट्टारकश्री चन्द्रकीर्त्ति ताना बाई श्रीपास (र्श्व) मती तच्छिष्य पं० मयाराम पठनार्थ लिखितं श्रीतपागच्छे श्रीविजयराजान्नाये श्रीवारणस्यां नगर्यो भीलूपुराश्रीजिनमन्दिरे श्रीपार्श्वनाथप्रसादात् अन राज्यत्रयाधिपतिराजाबल्वणस्संघदेवाः तद्राज्यप्रवर्त्तमाने । श्रीरस्तु । श्रीमूलसंधे श्रीभट्टारक जिनेन्द्रभूषणजी भट्टारक महेन्द्रभूषणजी श्रीआचार्यदेव नरेन्द्रकीर्त्तिजी श्रीगोपालचले । उल्लिखित प्रशस्ति के श्लोकों में जो रेखाकित नाम आये हैं उनसे यह बात ज्ञात होती है कि तोमरवंशीय राजा वीरमदेव के बड़े विश्वासपात्र मन्त्री जैसवालवंशोद्भूत श्रीकुशराज ने जिन दिनों श्रीचन्द्रप्रभतीर्थंकर का एक दिव्य एवं भव्य मन्दिर बनवाया उन्हीं दिनों कायस्थ कुलोद्भूत विद्वर पद्मनाभ जी ने इस प्रस्तुत ग्रंथ का प्रणयन परिसमाप्त किया ।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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