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________________ किरण ३] इतिहास का जैनग्रन्थों के मंगलाचरण और प्रशस्तियों से घनिष्ठ सम्बन्ध १०५ अस्तु, जैनग्रन्थों के मंगलाचरण और प्रशस्तियाँ ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े काम की चीजें है । कुछ ही ग्रन्थ ऐसे होंगे जिनके मंगलाचरण में अपने पूर्वं कवियों के नाम अथवा कृतियों का उल्लेख नहीं किया गया हो तथा प्रशस्तियों में अपनी गुरुपरम्परा और तत्कालीन राजवंश का परिचय नहीं दिये गये हों । यहीं तक नहीं बल्कि प्रशस्ति नीचे जिस धर्मप्राण जैनी स्त्री-पुरुष उस ग्रन्थ की प्रतिलिपि करवा कर किसी मन्दिर में प्रदान किये रहते हैं उनकी वंशपरम्परा का भी उल्लेख बहुत मिलता है । ऐसी दशा में इतिहास - प्रणेता अन्वेषकों को जैनग्रंथों के मंगलाचरण और प्रशस्तियाँ कितने काम की चीजें हैं- इस बात का पता सहज ही में लग सकता है । बड़े दुःख की बात है कि भारत के इतिहास लेखकों ने पारसी, अरबी आदि अन्यान्य सम्प्रदाय के साहित्य एवं इतिहास का अनुशीलन करने का कष्ट तो उठाया किन्तु भारतीय साहित्य तथा इतिहास का सर्वश्रेष्ठ साधन जो जैनग्रन्थ हैं उनकी ओर जरा भी ध्यान नहीं दिया । इसका मुख्य कारण यह भी हो सकता है कि ग्रन्थों के प्रकाश में नहीं आने एवं जैनशास्त्रभाण्डाराधिपतियों की लापरवाही के कारण अन्यान्य ऐतिहासिक विद्वान् जैनग्रन्थों में भरे पड़े ऐतिहासिक साधनों से लाभ नहीं उठा सके । अब एकाएक सभी जैन ग्रन्थों को प्रकाशित कर देना तो अशक्य सा हो रहा है किन्तु इस "भास्कर" का यह पहले ही से ध्येय बना हुआ है कि अप्रकाशित जैनग्रन्थों को संगृहीत कर उनके मंगलाचरण और प्रशस्तियों के प्रकाशनद्वारा यावच्छाय ऐतिहासिक साधन सञ्चित कर दिया जाय । ग्रन्थमाला के रूप में अन्यत्र मंगलाचरण तथा प्रशस्तियाँ प्रकाशित की गयी हैं । इस भवन के सुयोग्य पुस्तकालयाध्यक्ष पण्डित के० भुजबली शास्त्री जी ने यथोपलब्ध सामग्री से उनके ऊपर ऐतिहासिक प्रकाश भी डाला है । बल्कि इसी ध्येय को लेकर आज मैं भवन के संगृहीत एक ग्रन्थ "दयासुन्दराभिधान अपर नाम यशोधर - चरित्र" की प्रशस्ति पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर संक्षेप में उसके ऐतिहासिक साधनों का दिग्दर्शन कराने का प्रयास करता हूँ । इस ग्रंथ के रचयिता पद्मनाभ नामक कायस्थ हैं । भारतवर्ष में कायस्थ ही एक ऐसी जाति है जो अन्यान्य शिक्षित देशों से शिक्षा में टक्कर ले सकती है। पौराणिक युग से लेकर अबतक इस जाति ने शिक्षा को एकान्त चिरसंगिनी बनाकर प्रचुर प्रसिद्धि प्राप्त कर रक्खी है । धर्माशर्माभ्यु दुब नामक प्रसिद्ध जैन काव्य ग्रंथ के रचयिता हरिश्चन्द्र भी कायस्थ ही थे । हिन्दू संस्कृत साहित्य के रचयिताओं में कायस्थ जाति का कहीं नाम निर्देश नहीं है । ज्ञात होता है कि ब्राह्मणजाति ने इनके पाण्डित्य का समादर नहीं कर संकीर्णता का आश्रय लिया, इसी से कायस्थ जाति अपनी अमूल्य रचनाओं से जैनसंस्कृत साहित्यभाण्डार की पूर्ति करने लगी । + अस्तु, इस यशोधर-चरित के मंगलाचरण में कोई गुरुपरम्परा अथवा कविपरम्परा नहीं दी गयी - अतः यहाँ केवल प्रशस्ति ही दी जाती है किन्तु साथ ही साथ यहाँ मैं यह लिख देना समुचित
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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