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________________ भास्कर [ भोग २ 1 हैबेल ने उनका पलड़ा ऊपर उठाकर कहा, "नहीं, भारतीय सभ्यता स्वयं विश्व-सभ्यता की जननी है। अपने विकाश के लिये इसे ग्रीसवालों के प्रसाद की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता न थी; बल्कि, उस समय भी भारतवर्ष विश्व का धर्मगुरु ही था । " ܀ ܪ बहुत ध्यान न दिया । इतिहासकारों की इस खींचातानी में नीस की बातों पर विद्वानों नीस की आँखों पर विचार - संकोच और पक्षपात का चश्मा चढ़ा हुआ था । पर भावुक हैवेल को आचार्य भारत के सभ्यतासूर्य की प्रचण्ड रश्मियों से चकाचौंध सी लग गयी थी । इन दो दलों के कोलाहल को न सुनकर टार्न, स्पूनर, फर्गुसन और स्मीथ जैसे धीर, शान्त और वैज्ञानिक लेखक. विष्पक्षता के मन्दिर में सत्य का पता लगा रहे थे । मैं समझता हूं कि, वे सत्यता के बहुत बड़े श का पता लगाने में समर्थ हुए हैं। सिकन्दर की चढ़ाई राजनीतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण थी । इसने पहली बार भारत की महत्ता का द्वार यूरोपवालों के लिये खोल दिया । यह सच है कि, भारतवासियों के सामने सिकन्दर का कोई आदर्श समाहत न हो सका । लोगों ने उसकी चढ़ाई को एक साधारण घटना से अधिक न समझा । यहाँ तक कि, कोई बौद्ध, जैन और हिन्दू लेखक इसकी कुछ भी चर्चा नहीं करता है । इसीलिये भारतवर्ष का इतिहास अजीब पहेली बना हुआ है। इसकी मूल भित्ति का पता लगाना अर्थात् इसकी असली तह तक पहुंचना सिद्ध-शिला का आश्रय लेने के समान हो रहा है। यों तो अब बहुत से विद्वान् कथासरित्सागर जैसे कपोलकल्पित कथाओं एवं अल्हा - उद्दल की गायी जाती हुई वीरगाथाओं से भी वैज्ञानिक ढंग से चीर-नोर की तरह ऐतिहासिक तत्त्व निकालने में सफल से हो रहे हैं। अस्तु, अब मैं अपने प्रकृत विषय पर आने के पहले डाक्टर राजेन्द्रलाल मिल, माननीय मिस्टर फर्गुसन तथा डाक्टर भण्डारकर को धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिन्होंने संस्कृत ग्रन्थों के मङ्गलाचरण और प्रशस्तियों को संगृहीत और प्रकाशित कर भारतीय इतिहासाधन का प्रचुर परिमाण मैं उपस्थित कर देने का अक्षय्य श्र ेय उठाया है । हिन्दू लेखक मंगलाचरण और प्रशस्तियों का महत्व नहीं जानते थे। उन्होंने मंगलाचरण और प्रशस्तियाँ तो लिखी हैं किन्तु उनमें ऐतिहासिक मसाले मिलने कठिन से है। गये हैं । यो हिन्दू पुराणों में राजवंशों का वर्णन ऐतिहासिक अंग माना जाता है किन्तु राजाओं का समय-निर्णय करना दुस्साध्य सा हो रहा है। हाँ, इतिहास का एकमात्र साधन शिलालेख एवं ताम्रपत्र हो रहे हैं। मैं समझता हूँ कि इन दोनों के अभाव में भारतीय इतिहास बिना पेंदे की लुटिया के समान इधर उधर ढन-मनाता फिरता । जयपुर निवासी महामहे । पाध्याय स्वर्गीय पं० दुर्गादत्त द्विवेदी भारतीय इतिहास संसार के कम धन्यवाद के पात्र नहीं है जिन्होंने निर्णयसागर प्रेस से 'प्राचीन लेखमणिमाला' नाम की दो भागों में दो मोटी जि प्रकाशित कर इतिहास-लेखकों का मार्ग बहुत कुछ परिष्कृत कर दिया है।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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