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________________ किरण ३ ] अमरकीर्तिगणि और उनका षट्कर्मोपदेश षट्कर्मोपदेश के वे संधिपद जिनमें कवि व उनके प्रेरक के नाम आये हैं। संधि पत्ता १, १३, सो लोइ थुणिजह साहु भणिजइ अमरकित्ति-पयणिहिय मणु। वजिय-कुवियापउ हय कंदप्पउ अंबपसाय-सु(कुसीलहणु । २, ११, परकालि वि सो चिरु दुश्चरिउ भवकाडीहिं समजिउ । लहु अंबपसाएं लहइ सुहु अकरकित्तिगणि पुजिउ ॥ ३, १, जिणंग-विलेपण पुण्ण समिद्ध । कहा सु.ण अंबपसाय पसिद्ध । ३, २३, जो गंधहिं अणिसु सुयंधहिं अमरकित्ति समलहइ जिणु । सासय सुहु सो पावइ लहु अंबपसाय विसुद्धमणु ॥ ४, २६, तझ्या भवि होएवि णरवरा। पालिविरज्जु रिवि संजमधरा। . अमरकित्ति-अक्खय सुह भायण । अंबपसाय हवेसहिं पावण ॥ ५, १४, ते पाविवि सासयणयरि पउ अमरकित्ति होइवि अच्छेसहि । सिद्ध-सहावियणाणतणु अंबपसाय सयलु पिच्छेसहि ॥ ६, १, जिण णेवज-कहा आयण्णहि । अंबपसाय भविय मणि मण्णहि । ६, १४, सत्त भव वि होएविणु णिवइ अमरकित्ति सो सुरवरु । मणि भावहि अंबपसाय तुडं पावेसइ थिर पुरवरु ॥ ७, १, णिसुणि महासह चञ्चिणि-णदण । विरइय अमरसूरि गुरु-वंदण । ७, . ८, सारजम्मु लहेविणु कयतवहिं अमरकित्तिगणि-संसिया। . ते होसहिं अंबपसाय पुण, सिद्ध तिलोय-णमंसिया॥ ८, १८, अवरु वि जो भत्तउ, थिरसम्मत्तउ, अमरकित्ति-जिणु पुज्जइ । धूवे सो सिवसुहु णिहणिय-भवदुहु, अंबपसाय समजइ ॥ ९, १, ताहं कहा वजरमि पयत्ते । अंबपसाय णिसुणि सहियत्ते। ९, ११, अविहु वि पूयाहि फलु अमरकित्ति सुहलच्छि पयासणु । अंबपसाय सुणताहं जं कुणेइ जीवहं भव-णासणु ॥ १०, १, णिसुणि कहा तहो पवरविहाणहो । अबपसाय सुपुण्णणिहाणहो । १०, १२, जिण-पूय-पुरंदर-विहि करइ इक्कवार जो इत्थु णरु । सो अंबपसाय हवेइ लहु अमरकित्ति-तियसेसर॥ .
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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