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भास्कर
[ भाग २
११, १, अणिसु करिजइ सुगुरुवासणा । अंबपसाय दुरियणिण्णासणा। ११, ११, सज्झायहु सण्णिहु णत्थि परु अमरकित्ति सुइठाणु वरिट्टउ ।
अंबपसाय करंतु णिरु जं णरु पावइ णाणु मणिहिउ ॥ १५, ५, पंचिंदियसंजमु भणिउ संखेवें अवरु वि आयणहि ।
गुणवाल-सुय णएणय गुरु (१) पालिय संजमु बहुगुण मण्णहि ॥ १२, १८, सम्मत्तसुद्धि इय मई कहिय. अमरकित्ति-जिणदेसिय ।
भाविजसु अंबपसाय तुडं णियमणम्मि सविसेसिय ॥ १३, १७, षयवंतु मरइ सल्लेहणई अमरकित्ति सुहु पावइ ।
सुणि अंबपसाय विसुद्धमणु भवसम्मुहउ ण आवद ॥