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भास्कर
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[ भाग २
सन्मान करते थे, मानो क्षात्रधर्मं ने ही शरीर धारण कर लिया हो । धर्म, परोपकार दान में उनकी प्रवृत्ति थी। उनके राज्य में दुःख, दुर्भिक्ष व रोग कोई जानता ही न था, इत्यादि ।
४ कवि की रचनाएँ
कवि ने ग्रन्थ के इसी प्रस्तावना - भाग में अपने बनाये हुए अन्य ग्रन्थों का भी उल्लेख कर दिया है जिसमें निम्न ग्रन्थों के नाम पाये जाते हैं'
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१ मिणाह- चरिउ (नेमिनाथ - चरित्र) २ महावीर चरिउ
३ जसहर - चरिउ ( यशोधरचरित)
४ धर्मचरित्र - टिप्पण
५ सुभाषित-रन-निधि
६ धर्मोपदेश- चूडामणि
७ ध्यान- प्रदीप ( झाणपईड)
छक्कम्मुवरस ( षट्कर्मोपदेश)
इनमें से जसहर चरिउ के सम्बन्ध में उन्होंने स्पष्ट कहा है कि उसे उन्होंने पद्धडिया
होना सिद्ध है । सुभाषित-रत्ननिधि सुन्दर श्लोकों का शिक्षा दी गई है।
बंध में रचा था जिससे उसकी रचना का अपभ्रंश में के सम्बन्ध में कहा है कि उसमें उन्होंने संस्कृत के ध्यानप्रदीप के विषय में कहा है कि उसमें ध्यान की को उन्होंने ऐसा रचा था कि जड़ भी उसे अच्छी तरह समझ जाय । नहीं कहा ज सकता यह सुन्दर टिप्पण उन्होंने कौन से धर्मचरित्र पर बनाया । कहीं धर्मचरित्र से उनका तात्पर्य उनकी परम्परा के पूर्व आचार्य अमितर्गात द्वारा रचित धर्मपरीक्षा से तो नहीं है ? जसहर-वरिउ और सुभाषितरत्न-निधि को छोड़ कर शेष ग्रन्थों की भाषा क्या थी यह कवि ने प्रकट नहीं किया । उनका टिप्पणग्रन्थ तो संस्कृत में ही रहा होगा, किन्तु बहुत सम्भव है कि शेष सब ग्रन्थ, और विशेषतः रोमियाह - चरिउ और महावीर - चरिउ, अपभ्रंश में ही रचे गये हों । कवि ने कहा है कि इन ग्रन्थों के अतिरिक्त उन्होंने और भी बहुत से काव्य संस्कृत और प्राकृत में रचे थे जिनसे लोगों को आनन्द मिलें । अत्यन्त खेद की बात है कि इनमें से प्रस्तुत ग्रन्थ को छोड़ कर अन्य किसी भी ग्रन्थ का हमें अभीतक कुछ भी पता नहीं है । ऊपर कहा ही जा चुका है कि अमरकीर्तिजी की गण और सूरि उपाधियों से उनकी विद्वत्ता प्रकट होती है । प्रस्तुत काव्य की संधियों की पुष्पिकाओं में उन्होंने इस रचना को महाकाव्य और अपने को महाकवि कहा है । १ देखो परिशिष्ट १ (१, ७, १ आदि)
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संग्रह किया था । धर्मचरित्र - टिप्पण