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________________ किरण ३ ] अमरकीर्तिगणि और उनका षट्कर्मोपदेश ८३ araक है। विचार करने से महीयड देश वर्तमान 'महीकांठा' तथा गोदय नगर वर्तमान 'गोध्रा' नगर के बोधक प्रतीत होते हैं। महीकांठा एजेन्सी की वर्तमान सीमा संकुचित कर दी गई है जिससे गोध्रा नगर पंचमहल जिले में पड़ता है । कवि के समय में वह महीकांठा प्रदेश में ही सम्मिलित था । सम्भवतः अम्बाप्रसाद यहीं के निवासी थे । एक जगह कवि ने उन्हें कृष्णपुर- वंश-विजयध्वज" कहा है। यह कृष्णपुर ( कण्हपुर) वंश या तो नागर कुल का ही बोधक है या नागर कुल उसके अन्तर्गत था । सम्भव है यह वंश पहले किसी कृष्णपुर से यहां आकर बसा हो इसी से वह कृष्णपुरवंश कहलाया । ३ रचना - काल १२३४ से १२३६ कवि ने अपने ग्रन्थ की रचना का समय भी लिख दिया है। उन्होंने अपना यह काव्य विक्रम संवत् १२४७, भाद्रपद मास के दूसरे (शुक्ल ?) पक्ष की चतुर्दशी दिन गुरुवार को समाप्त किया था । कवि के समय में गोध्रा में चालुक्यवंशी नृप वंदिग्गदेव के पुत्र कण्ह (कृष्ण) नरेन्द्र का राज्य था । इतिहास से प्रसिद्ध है कि इस समय गुजरात में चालुक्य अर्थात् । सोलंकी वंश का राज्य था जिसकी राजधानी अनहिलवाड़ा थी । पर उस वंश में वंदिगादेव और उनके पुत्र कृष्ण का कोई उल्लेख नहीं पाया जाता । पूर्वोक्त समय में अनलिवाड़ा के सिंहासन पर भीम द्वितीय प्रतिष्ठित थे जिन्होंने विक्रम संवत् १२३६ से १२६६ तक राज्य किया। उनसे पूर्व वहाँ कुमारपाल ने संवत् १२०० से १२३१ तक, अजयपाल ने १२३१ से १२३४ तक और मूलराज द्वितीय ने तक राज्य किया था। भीम द्वितीय के पश्चात् वहां सोलंकी वंश की एक शाखा बाघेल या बाघेर वंश की प्रतिष्ठा हुई जिसके प्रथम नरेश विशालदेव ने १३०० से १३१८ तक राज्य किया, पर हिलवाड़ा में इस वंश का बल संवत् १२२७ से ही बढ़ना प्रारम्भ हो गया था । इस वर्ष में कुमारपाल की माता की बहिन के पुत्र अराज ने अनहिलवाड़ा के निकट बाघेला ग्राम का अधिकार पाया था । जान पड़ता है कि चालुक्य वंश की एक शाखा या तो पहले से ही महीकांठा प्रदेश में प्रतिष्ठित थी और गोध्रा में अपनी राजधानी रखती थी या अणहिलवाड़ा में बाघेल वंश का बल बढ़ते ही वहां प्रतिष्ठित हो गई थी । कवि ने वहां के कृष्ण नरेन्द्र की कीर्ति का खूब वर्णन किया है । वे नीति के पूरे जानकार थे, भीतरी और बाहिरी शत्रुओं के विनाशक थे तथा षड्दर्शन का भक्ति से १ देखो परिशिष्ट १ (१, ८, ७ सुणि कण्हपुर- वंस - विजयद्धय ) २ देखा परिशिष्ट २ (१४, १८, ८०१० ) ३ देखा परिशिष्ट १ (१, २, १ आदि) History of Gujrat in Bombay Gazeteer Vol. I.
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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