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________________ किरण ?] जैन-मूर्तिया इन उल्लेखों से स्पष्ट है कि जिनमूर्तियों का प्राचीन रूप वस्त्ररहित नग्न था और वह ठीक वैसा ही था जैसा कि दिगम्बराम्नाय के शास्त्रों में बताया गया है। यदि इसके विपरीत जिनप्रतिमा का स्वरूप वस्त्र और आभरणों से शृङ्गारित माना जाय तो वहाँ जिनप्रतिमा की स्थापना का महत्त्व ही नष्ट हो जाता है, क्योंकि शास्त्रकार का वचन है: 'कथयन्ति कषायमुक्तिलक्ष्मी, परया शान्ततया भवान्तकानां । प्रणमामि विशुद्धये जिनानां प्रतिरूपाण्यभिरूपमूर्तिमन्ति ॥' अर्थात्-"जन्म मरण का अन्त कर देनेवाले जिनों की मूतियाँ जो बिल्कुल उन्हों की जैसो होती हैं अपनी उत्कृष्ट शान्ति के द्वारा यह बतलाती हैं कि कषायमुक्ति कैसे प्राप्त की जाती है। इसलिये मैं उन्हें विशुद्धि प्राप्त करने के लिये प्रणाम करता हूँ।" अब भला कहिये, उन मूर्तियों पर वस्त्रादि शृङ्गार कैसे संभावित हो सकता है। अतः यह मानना ठोक है कि प्राचीन जिन-प्रतिमा निराभरण और निर्वस्त्र होती थी ! 'प्रतिष्ठासारोद्धार' नथ में उनका उल्लेख इस प्रकार है : "शांतप्रसन्नमध्यस्थनासाग्रस्थाविकारद्वक् । संपूर्णभावरूरूऽनुविद्धांगं लक्षणान्वितम् ॥६३॥ रौद्रादिदोषनिर्मुक्त प्रातिहा कयतयुक् । निर्माप्य विधिना पीठे जिनविंबं निवेशयेत् ॥६४॥" अर्थात्-"जो शांत, प्रसन्न, मध्यस्थ, नासपस्थित अविकारी दृष्टिवाली हे।, जिसका अंग वीतरागपने सहित हो, अनुपम वर्ण हो, और शुभलक्षणों सहित हो रौद्र आदि बारह दोषों से रहित हो, अशोक वृतादि प्रातिहायों से युक्त हो और दोनों तरफ यक्ष-यक्षी से वेष्टित हो, ऐसी जिनप्रतिमा को बनवाकर विधि-सहित सिंहासन पर विराजमान करे।" यह जिन-प्रतिमा का आदर्श-रूप है। किन्तु बहुत सी ऐसी प्रतिमायें मिलती हैं जिनमें प्रातिहार्य व यक्षादि कुछ भी नहीं होते। इससे प्रकट है कि व्यवहार में सुविधानुसार शिल्पी जिन-प्रतिमा को बनाते हैं, जिसमें वीतराग दृष्टि, सौम्य आकृति और निर्वस्त्रता होना अनिवार्य है ! अब प्रश्न यह है कि ये प्रतिमायें किस वस्तु की और किन किन महापुरुषों की बनाई जाती हैं ? तथा उनके बनाने के स्थान क्या क्या हैं ? इन प्रश्नों के उत्तर में हमें “वसुनन्दिश्रावकाचारादि" के निम्न श्लोक मिलते हैं : १ प्रतिष्ठासरोद्धार (बम्बई) पृष्ठ ७ २ बसुनन्दि श्रावकाचार (मुरादाबाद) पृष्ठ ६८
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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