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________________ भास्कर [भाग २ जो वर्णन उनके शास्त्रों में मिलता है, वह इसी बात का द्योतक है कि प्राचीन प्रतिमायें नग्न बनाई जाती थीं। मथुरा और खण्डगिरि-उदयगिरि की प्राचीन प्रतिमायें नग्न ही हैं, जसे कि दिगम्बरों की मान्यता है। इसके अतिरिक्त अजैन शास्त्रकार भी जिन-प्रतिमाओं का स्वरूप वैसा ही बतलाते हैं जैसा कि दिगम्बर शास्त्र प्रकट करते हैं । देखिये 'बराहमिहिरसंहिता में कहा गया है: __ "आजानु लम्बवाहुः श्रीवत्साङ्कः प्रशान्तमूर्तिश्च । दिग्वासास्तरुणो रूपवांश्च कार्योऽर्हतां देवः ॥४५॥५८॥" अर्हन्त की प्रशान्तमूर्ति श्रीवत्स चिह्न से अङ्कित तरुणरूप लम्बी बाहों वाली नंगी होती है। 'मानसार' शास्त्र से स्पष्ट है कि जिन-मूर्तियां ठीक मनुष्याकृति की-दो बाहों, दो आँखों, एक सिर सहित होती हैं और वह निराभरण व वस्त्ररहित नग्न होती है। यथा "निराभरणसर्वाङ्गनिर्वस्त्रागमनोहरम् । सत्यवक्षस्थले हेमवर्णश्रीवत्सलाञ्छनम्।" ----------- किसी प्रकार का झगड़ा न होने पावे इसलिये अब जो नई प्रतिमायें बनवाई जाय, उनके पादमूल में वस्त्र का चिह्न बना दिया जाय।' (मा पडिमाणविवाओ होहीत्ति विचिंतऊण सिरि संघों। कासी . पल्लवचिं, नवाण पडिमाणपयमूले ॥) इससे स्पष्ट है कि प्राचीन प्रतिमायें निराभरण और वस्त्ररहित होती थीं। श्रीरत्नमण्डनगणि के "सुकृतसागर" नामक ग्रंथ से स्पष्ट है कि गिरिनार पर श्रीनेमिनाथ स्वामी की प्रतिमा शृङ्गाररहित नग्न थी। श्रीरत्नमन्दिरगणि की 'उपदेशतरंगिणी' से भी इसी बात का समर्थन होता है। इन उद्धरणों को श्री पं० नाथूराम जी प्रेमी ने अपने व्याख्यान में पेश करके यह दरशाया है कि मूर्ति पर शृङ्गार करने और वस्त्र पहनाने की प्रथा नवीन है। हमारे श्वेताम्बर भाई प्राचीन प्रतिमाओं में लिङ्ग चिह्न होना नहीं मानते ; किन्तु मथुरा आदि की प्राचीन प्रतिमायें उनकी इस मान्यता का खंडन करती हैं। किन्हीं जिन-प्रतिमाओं में, जो पल्यंकासन होती है, शिल्पकार अपनी सुविधा के लिए लिंग-चिह्न नहीं भी बनाता है। ऐसी प्रतिमायें दिगम्बर-मंदिरों में देखने को मिलती हैं, किन्तु इसपर से यह नहीं कहा जा सकता कि प्रतिमाओं का प्राचीन रूप नन नहीं था। १ "द्विभुजं च द्विनेत च मुण्डतारं च शीर्षकम् ।”—मानसार ७२ । २. मानसार ८१-८२।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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