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भास्कर
[ भाग २ "मणिकणयणरुप्पय, पित्तलमुताहलोवलाइहिं ॥
पडिमालक्खणविहिणा, जिणाइपडिमा घडाविजा ॥३६०॥" अर्थात्-"मणि, सोना, रूपा, पीतल, मोती और पत्थर आदि में जिन भगवान् के लक्षण बनवा कर प्रतिमा बनवावे ।" आदि शब्द से मतलब चित्र, लेपमय वस्त्र, व काठ की प्रतिमाओं का है, जिनकी प्रतिष्ठा-विधि भी उनका प्रतिविम्ब दर्पण में लेकर पाषाणादि प्रतिमाके समान है। वे प्रतिमायें अर्हत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधुमहाराजकी होती हैं', किन्तु मुख्यतः इनमें अर्हत प्रतिमाओं की-उनमें भी तीर्थङ्कर अर्हत की प्रतिमाओं की है अर्हत की प्रतिमा से तीर्थकर की प्रतिमा को व्यक्त करने के लिये प्रत्येक तीर्थंकर का चिह्न उनकी प्रतिमा पर बना दिया जाता है। सिद्ध की प्रतिमा शरीराकार की रेखामात्र होती है १ सौवर्ण राजतं वापि पैत्तलं कांस्यजं तथा ॥-प्रवाल्यं मौक्तिकं चैव वैडूर्यादिसुरत्नजं ।
चित्र क्वचिच्चन्दन जपपरं ॥–जिनयज्ञकल्प। २ चित्तपडलेवपडिमाए दप्पणे दाविऊण पडिबिंब ।' इत्यादि-"चिताम की तथा वस्त्र वा भीत पर खींची हुई जो जिनप्रतिमा है उसका प्रतिबिंब दर्पण में दिखावे ।"-ब० श्रा० ।
३ 'सूरीणाम्, पाठकानाम् च साधूनां च यथागमम् ।-आगम के अनुसार आचार्य, उपाध्याय और साधु की प्रतिमा बनानी चाहिये अर्थात् आचार्य और उपाध्याय की प्रतिमाओं के साथ शास्त्र भी बनाना चाहिये और साधुओं की प्रतिमा के साथ पीछी और कमंडलु ! किन्हीं का मत है कि साधुओं की प्रतिमायें न बनवा कर उनका निषिधिका पर मात्र चरण चिह्न ही बनाना चाहिये । नशियाँ इटावा में चरणसहित निषधिका दिगम्बर मुनियों की बनी हुई हैं। बीजोल्या (मेवाड़) में भी ऐसी ही निषांधकायें हैं ; किन्तु उनमें ऐसा भी है जिनपर दिगम्बर मुनियों की मूर्तियां पीछी कमंडल-सहित बनी हुई हैं। विशेषतः साधु महाराज की प्रतिमा बनाने का रिवाज बहुत कम है। अधिकांश और प्राचीन प्रतिमायें तो प्रायः अर्हतभगवान की ही मिलती हैं। ४ "स्थापयेदहतां छततयाशोकप्रकीर्णकम् । पीठं भामंडलं भाषां पुष्पवृष्टिं च दुन्दुभिम् ॥
स्थिरतरार्चयोः पादपीठस्वाधो यथायथम् । लांछनं दक्षिणे पार्वे यतं यक्षी च वामके ॥ गौर्गजोऽश्व: कपिः कोकः कमलं स्वस्तिकः शशी । मकरः श्रीगु मो गंडो महिषः कोलसेद्विको ॥
बज्र मृगोऽजष्टशूगर कलशः कूर्म उत्पलम् । शंखो नागाधिपः सिहो लांछनान्यहता क्रमात् ॥" अर्थात्-"अहंत प्रतिमा को तीन छत, दो चमर, अशोकवृक्ष, दुदुभि बाजा, सिंहासन, भामंडल, दिव्य भाषा, पुष्पवर्षा--इन आठ प्रतिहार्यो से शोभित करे। उसके बाद स्थिर और चल दोनों प्रतिमाओं में सिंहासन के नीचे जैसा शास्त्र में कहा है वैसे ही सीधी बाजू में भगवान के चिह्न को
और बाई ओर यह और यक्षी को खड़ा करे। अर्हतों के शरीर के चिह्न क्रम से (१) बैल (२) हाथी (३) घोड़ा (४) बंदर (५) चकवा (६) कमल (७) साथिया (८) चंद्रमा (6) मगर (१०) श्रीबुर (११) गैंडा (१२) भैंसा (१३) सूअर (१४) सेही (१५) वज्र (१६) हरिण (१७) बकरा (१८) मच्छ (११) कलश (२०) कछुआ (२१) कमल की पांखुरी (२२) शंख (२३) सर्प (२४) सिंह-ये चौबीस हैं।"-प्रतिष्ठासारोद्धार पृ०८