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________________ . भास्कर [ भाग २ इस प्रशस्ति से यही बात ज्ञात होती है कि अप्पयार्य ने सिद्धार्थ नामक संवत्सर १२४१ माघ शुक्ल दशमी रविवार एवं पुष्य नक्षत्र में पुष्पसेनाचार्य के आदेश से रुद्रकुमार के राज्य में एकशैलनामक नगर में यह ग्रन्थ लिखकर समाप्त किया है। उल्लिखित समय खुष्ट शक २०वीं जनवरी १३२० A. D. होता है। न मालूम किस आधार पर हीरालालजी ने अपने सम्पादित कैटलग में अप्ययार्य को पुष्पसेन का शिष्य लिखा है। ज्ञात होता है कि मंगलाचरण का १९वा श्लोक आपकी नजरों से नहीं गुजरा है। क्योंकि पुष्पसेन तो प्रेरक ही मालूम होते हैं। .. उक्त यह एकशैल वर्तमान वरंगल का प्राचीन नाम है। वरंगल के और भी कई नाम हैं। यह प्राचीन तैलंग की राजधानी थी। काकतेयों ने इस पर ईस्वी सन् १९९० से १३२३ ईस्वी तक राज्य किया है। इसी वंश में राजा रुद्रदेव हुए हैं। इनकी यहीं राजधानी थी। मालूम होता है राजा रुद्रदेव इस वंश के अन्तिम राजा थे, क्योंकि इस प्रशस्ति से पता चलता है कि इस प्रन्थ की रचना ईस्वी सन् १३२० में हुई है और उस समय रुद्रदेव ही शासन कर रहे थे। प्रशस्तिगत धरसेन, कुमारसेन, पुष्पसेन, श्रीपाल इन विद्वानों के सम्बन्ध में मेरा इस समय कुछ भी विशेष वक्तव्य नहीं है। क्योंकि श्रवणबेलगोल के कतिपय शिलालेखों में धरसेन जी को छोड़कर शेष तीन नाम उपलब्ध होते हैं अवश्य, परन्तु इनमें से कुछ शिलालेखों में तो इनका समय ही नहीं दिया गया है। जिन लेखों में समय दिया गया है, वह भी "अप्पयार्य" के समय से मेल नहीं खाता। "दिगम्बर जैन प्रन्यकर्ता और उनके ग्रन्थ" में आये हुए इन उल्लिखित नामवाले ग्रन्थकर्ताओं की कृतियों को देखने से संभवतः इनका विशेष परिचय मिल सकता है। , हिन्दी-विश्वकोष भाग ३ पृष्ठ ४६६ और List of the Antiquarian Remains in the Nizam's Territories By cousens. "Another name of Warrangalxx, is Akshalingar, which in the opinion of Mr. consens is the same yekshilangara." --The Geographical Dictionary of Ancient & Medieaval India By Nandoo Lal Dey P.8. २ अनुमकुन्दपुर, अनुमकुन्दपट्टन, कोरुकोल (of Ptolemy), वेणाकटक, एकशैलिनगर आदि । (The Geographical Dictionary P. 262.) ३ रुद्रदेव का शिलालेख JASB, 1838 P. 903 साथ ही Prof. Wilson's Mackenzie ___collection P. 76. ४ The Geographical Dictionary, P. 8. 'वरंगल के काकतीय वंशी एक राजा x x x हिन्दी-विश्वकोष भाग १२, पृष्ठ ६२७ नोट-विश्वकोषकार ने संख्या ३ देकर इनके सिवा एक और का भी उल्लेख किया है। "एक हिन्दू राजा ये तैलंगाधिपति थे" सम्भवतः यह विश्वकोष-कार के तैलंग और वरंगल इन दोनों को दो भिन्न स्थान समझने की भूल है।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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