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________________ किरण २ ] ७३ प्रमाणनयतत्वालोकालंकार की समीक्षा (७) स्यादस्त्येव स्यान्नास्त्येव स्यादवक्तव्यमेवेति क्रमतो विधिनिषेधकल्पनया युगपद्विधिनिषेधकल्पनया च सप्तमः ॥२१ - ४॥ प्र० न० तत्वा ॥ इन अंगों में तृतीय, पञ्चम, षष्ठ और सप्तम विचारने योग्य हैं । इसके पहिले यह जान लेना आवश्यक है कि ये सात भंग क्यों होते हैं ? (१) वक्ता की सात प्रकार से वस्तु के कहने की इच्छा होती है इसलिये वह इन सात वाक्यों का प्रयोग करता है । (२) उसकी सात प्रकार से वस्तु के कहने की इच्छा इसलिये होती है कि जिज्ञासु उससे सात प्रकार के प्रश्न करता है । (३) जिज्ञासु सात प्रकार के प्रश्न इसलिये करता है कि उसे सात प्रकार से वस्तु के जाने की इच्छा होती है । (४) उसको सात प्रकार से वस्तु को जानने की इच्छा इसलिये होती है कि वस्तु में उसे सात प्रकार का संदेह पैदा होता है । (५) सात प्रकार का संदेह इसलिये होता है कि वस्तु में प्रत्येक पर्याय की अपेक्षा विधि - निषेध रूप सात प्रकार के धर्म पाये जाते हैं। में के सात प्रकार के धर्म ही कारण हैं । वस्तु का प्रयोग होता है । 1 इस प्रकार परम्परा से सात भंगों एक एक धर्म की विवक्षा में एक एक वाक्य जब स्वरूप से सत्त्व धर्म की प्रधानता से वस्तु के कहने की इच्छा होती है तब "स्यादस्त्येव सर्वम्” यह प्रथम भंग होता है । जब पररूप से असत्व धर्म की प्रधानता से वस्तु के कहने की इच्छा होती है तब “स्यान्नास्त्येव सर्वम्" यह दूसरा भंग होता है। जब क्रमार्पित स्वरूप पररूप से अस्तित्व नास्तित्व रूप तीसरे धर्म की प्रधानता से वस्तु के कहने की इच्छा होती है तब "स्यादस्ति नास्त्येव सर्वम्” यह तीसरा भंग होता है । इस भंग में अस्तित्व नास्तित्व दोनों धर्मवाच्य रहते हैं इसलिये पहिले, दूसरे भंगों से इसमें भेद होता है । कारण कि पहिले भंग में केवल अस्तित्व वाच्य रहता है, दूसरे भंग में केवल नास्तित्व वाच्य रहता है; इतना अवश्य है कि तीसरे में ये दोनों धर्म स्वतंत्र अनुभूयमान नहीं होते हैं किन्तु समूहरूप से ही इनका अनुभव होता है। जिस प्रकार बादाम, लायची, मिर्च, शक्कर आदि द्रव्यों से तैयार किये हुए पानक में इन सब का समूह रूप से अनुभव होता है इसलिये' वादाम, लायची, मिर्च, शक्कर आदि की अपेक्षा सब का मिश्रणरूप पानक स्वतंत्र एक वस्तु लोक-प्रसिद्ध है, उसी प्रकार प्रत्येक अस्तित्व, नास्तित्व की अपेक्षा दोनों का समूह भी एक स्वतंत्र धर्म सिद्ध होता है । इसको अस्तित्वविशिष्ट नास्तित्व या नास्तित्वविशिष्ट
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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