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________________ किरण २] विदुषी पम्पा देवी सौभाग्य प्राप्त हुभा। उसमें एक स्थान पर व्याकरणाचार्य जी ने हरिचन्द्र ने वादीसिंह से कथा नहीं ली इस बात को खुलासा करते हुए यों लिखा है-"राजकेशरी धर्मा-उपाधिधारी राजकुलोत्तंग के राज्यकाल में सेकिलर (तामिल कवि) ने "पिरियपुराणम्" प्रन्थ बनाया है। उसमें "तिरुत्तकदेवर" कविकृत "जीवकचिन्तामणि" का कुछ जिक्र हुआ है। तिरुत्तकदेवर ने अपने "जीवक-चिन्तामणि" में लिखा है कि “वादीम" के द्वारा प्रारंभ किये हुए इस ग्रन्थ के शेष भाग को हमने पूरा किया। इस नरेश का समय ग्यारहवीं ईसवी शताब्दी का उत्तरार्द्ध निश्चित है। अतः वादीभ का यही समय है।" व्याकरणाचार्य के इस समुद्धृत प्रमाण से भी मेरा उल्लिखित वादीभसिंह के समय-संबन्धी कथन और पुष्ट पड़ जाता है। परन्तु एक बात यहां पर विचारणीय है। वह यह है कि वादीभसिंह के जीवन्धर-जीवनी-विषयक दोनों प्रन्थ संस्कृत में हैं और पूर्ण हैं। तिरुत्तकदेवर का "जीवक-चिन्तामणि" तामिल में है। ऐसी दशा में तिरुत्तक देवर कैसे लिख सकते हैं किं वादीम के द्वारा प्रारंभ किये हुए इस ग्रन्थ के शेष भाग को हमने पूरा किया' । अगर तिरुत्तकदेवर का यह कथन सत्य है तो मानना पड़ेगा कि “जीवकचिन्तामणि" को वादीभ सिंह ने ही प्रारंभ किया था; पीछे इसी के शेष भाग को तिरुत्तकदेवर ने पूरा किया। इससे वादीभसिंह का जन्म स्थान भी एक प्रकार से निश्चित हो जाता है जो कि ऊपर अनुमान से सिद्ध किया गया था। - अब पाठकों को भलीभांति विदित हो गया होगा कि श्रीवादीभसिंह का समय ग्यारहवीं शताब्दी है। इसी बात को स्पष्ट करने के लिये उल्लिखित प्रमाणों का उल्लेख कर इस लेख के कलेवर को बढ़ाना पड़ा। क्योंकि वादीभसिंह के कालनिर्णय के विना पम्पादेको के कालनिर्णय का कोई अन्य साधन नहीं दीखता। जब वादीभसिंह का समय ग्यारहवीं शताब्दी सिद्ध होता है तब इनकी शिष्या पम्पादेवी का समय भी लगभग यही है ऐसा मानना ही पड़ेगा।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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