SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भास्कर भाग २ विदित होता है कि वादीभसिंह को आदर्श महापुरुष महाराज जीवन्धर की जीवनी अधिक प्रिय थी। फलतः इनकी दोनों कृतियां तद्भव मोक्षगामी, आचार-शिरोमणि, महाप्रतापी जीवन्धर की जीवनी को चित्रित करती हैं। महाराज जीवन्धर का हेमांगद* देश वर्तमान मैसूर राज्य के अन्तर्गत था ऐसा कुछ ऐतिहासिक विद्वानों का मत है। जीवन्धर श्रीमहावीर स्वामी के समकालीन थे। शिवमोग्ग जिलान्तर्गत पोम्बुच्च ग्राम में स्थित नं०४० के सन् १०७७ के मानस्तम्भगत शिलालेख से विदित होता है कि विक्रम सान्तार ने अजितसेन पण्डितदेव का चरण धोकर भूमि दान किया । कडूरु जिलान्तर्गत कोप्प तालूक कोप्प ग्राम में वर्तमान नं०३ सन् (लगभग) १०६० के शिलालेख से ज्ञात होता है कि महाराज मारसान्तार के वंशज.ने अपने गुरु मुनि वादीभसिंह अजितसेन की स्मृति में वहां के स्मारक को स्थापित किया। इसी प्रकार शिवमोग्ग जिला के तीर्थहल्लि ताल्लुक के नं० १९२ के सन् १९०३ के शिलालेखा से अवगत होता है कि पंचबस्ति के सामने अनन्दूर में चत्तल देवी और त्रिभुवनमल्ल सान्तारदेव ने द्राविड़संघ अरुङ्गलान्वय के अजितसेन पण्डितदेव के नाम से एक पाषाण-वैत्यालय बनवाया। इन उल्लिखित लेखों से ज्ञात होता है कि वादीभसिंह का समय ग्यारहवीं शताब्दी है। सोमदेव सूरिकृत 'यशस्तिलक-चम्पू' के द्वितीय आश्वासगत १२६ पद्य की व्याख्या में श्रीश्रुतसागर सूरि ने 'वादीभसिंहोऽपि मदीयशिष्यः श्रीवादिराजोऽपि मदीयशिष्यः' सोमदेव सूरि के इस पद्य को उद्धृत कर वादीभसिंह और वादिराज को सतीर्थ बतलाया है। वादिराज ने सन् १०२५ में अपने पार्श्वनाथ-काव्य को पूर्ण किया था। अतः इससे भी वादीभसिंह का काल निर्विवाद रूप में ग्नारहवीं शताब्दी ही सिद्ध होती है। और एक बात है, वादीभसिंह के ग्रन्थों में से अन्यतम "क्षत्रचूडामणि" के अन्त में 'राजतां राजराजोऽयं राजराजो महोदयैः। तेजसा वयसा शुरः क्षत्रचूडामणिर्गुणैः ॥ यह पद्य है। इस पद्यगत 'राजराज' शब्द अवश्य विचारणीय है। मेरा खयाल है कि यह श्लेषात्मक शब्द है। इसमें ग्रन्थकर्ता ने जीवन्धर के अतिरिक्त तत्कालीन अन्य किसी राजा का भी उल्लेख किया है। वह राजा चोलवंश का राजराज होना चाहिये। राजराज चोल का समय भी यही ग्याहरवीं शताब्दी है। इसी अवसर पर मुझे सरस्वती भाग २६, खण्ड २ में प्रकाशित श्रीयुत शम्भुनाथ त्रिपाठी, व्याकरणाचार्य के द्वारा लिखित "महाकवि हरिचन्द्र" शीर्षक लेख को देखने का ॐ इस विषय पर एक स्वतन्त्र लेख लिखा जायगा। (लेखक) + इन शिलालेखों के लिये "मद्रास व मैसूर प्रान्त के जैनस्मारक" देखें।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy