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भास्कर
[ भाग २ अजैन विद्वान् अपनी बिसात इस पुण्य-यज्ञ में हमारा साथी बने । प्रत्येक जिनेन्द्रभक्त का यह कर्तव्य है कि वह इस 'भास्कर' का स्वयं ग्राहक बने और अपने स्थान के मंदिर, सिद्धान्त-भवन और वाचनालय में इसके पहुंचाने का प्रबन्ध करें। 'भास्कर' का उदय चलतू साहित्य को सिरज कर थोड़ी देर का मनोरंजन करने के लिये नहीं हुआ है - इसका उदय स्थायी और अमूल्य साहित्य-ठोस ज्ञान को सिरजने के लिये हुआ है। क्या आप इस 'शान-भास्कर' से अपना गृह प्रकाशित नहीं करेंगे? यदि आप शान के उपासक हैं तो इसे अवश्य अपनाइये।
विदुषी पम्पा देवी
___ (ले-श्रीयुत पं० के. भुजबली शास्त्री)
प्राचीन कर्नाटक जैन विदुषियों में कन्ति को छोड़ कर उल्लेखाई अन्य किसी
प्राचीन जैन महिला का नाम उपलब्ध नहीं होता है, यह सचमुच खेद की बात है। प्राचीन साहित्यान्वेषण से यह प्रमाणित हो चुका है कि प्राक्तन जैन विद्वान् भारत की प्रायः सभी भाषाओं के साहित्य के स्तम्भ स्वरूप थे। निष्पक्षपाती सभी विद्वान् उन प्राचीन जैन विद्वानों की कीर्ति-गाथा को आज भी सहर्ष गाते हैं। ऐसी परिस्थिति में प्राचीन जैन विदुषियों की संख्या की कमी वस्तुतः अधिक खटकती है। यह जैन स्त्रीसमाज का दुर्भाग्य है। अस्तु, आज मैं एक कर्नाटक जैन विदुषी महिला का संक्षिप्त परिचय 'भास्कर' के सुज्ञ पाठकों के सामने उपस्थित करूँगा। .
इस विदुषी महिला का नाम पम्पा देवी है। इनके पूज्य पिता का नाम तेल सान्तार और माता का नाम चत्तल देवी था। सान्तार वंश का यह तैलसान्तार पोम्बुच्च में राज्यशासन करता रहा। यह सर्व विदित है कि प्राचीन काल में पोम्बुश्च एक समृद्धशाली जैन राजधानी थी। वहां पर पूर्वोक्त सान्तार वंश के अन्यान्य शासकों के द्वारा निर्मापित कई जैनस्मारक आज भी जीर्णावस्था में दृष्टिगोचर होते हैं। उल्लिखित तैल सान्तार महादानी रहा। इसीलिये यह जगदेक-दानी भी कहलाता था। इनकी धर्म-पत्नी पूर्वोक्त चत्तल देवी भी विशिष्ट जिन-भक्ता थी।
इन आदर्श दम्पतियों को श्रीवल्लभ अथवा विक्रम सान्तार नामक पुत्र तथा पम्पा देवी नामकी पुत्री थी। पम्पा देवी महापुराण की विशेष मर्मज्ञा रही। यह अनन्य पण्डिता थी इसीलिये शासनदेवी कही जाती थीं। इन्हें वाञ्चल देवी नाम की केवल एक पुत्री थी। यह वाञ्चल चालुक्य राजा तैल के सेनापति मल्लप्प की पुत्री एवं नागदेव की स्त्री