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________________ किरण २ ] जैन - पुरातत्त्व ४५ सच है कि जैनेतर पुरातत्त्वज्ञों ने भरसक कोशिश जेनकीर्तियों को प्रकाश में लाने की की है और उन्हीं के अध्यवसाय का यह फल है कि जैनपुरातत्त्व किञ्चित् प्रकाश में आया है और इसके लिये जैनी उनके चिरऋणी रहेंगे ! परन्तु जैनदृष्टि से जैन पुरातत्त्व का ठीक विश्लेषण करना और उसको पहचानना एक जैन विद्वान् का ही काम है। जहाँ जैन विद्वान् नहीं पहुँच सकते और जिस बात को वह नहीं समझ सकते उसको एक जैन पुरातत्त्वज्ञ सहज में समझ सकता है और उसकी गम्य भी विशेष है। कौशाम्बी जैसे स्थान का कोई भी ठीक ठीक पता के समको खुदाई हुये बिना नहीं चल सकता । फिर भी यदि वहां से आई हुई और इलाहाबाद के जैनमंदिरों में विराजमान मूर्तियों के लेखों का अध्ययन किया जाय तो इस विषय में बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही जैनमूर्तियों की आकृति पर भी नया प्रकाश पड़ सकता है। जैन पुरातत्त्व का अध्ययन करके एक जैन बहुत-सी नई और बड़े मूल्य की बातें जगत को भेंट कर सकता है । किन्तु जैनों में इस विषय की ओर रुचि ही नहीं है । आजसे लगभग सोलह वर्ष पहले स्वर्गीय सर विन्सेन्ट स्मिथ ने जैनों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया था और एक बड़ा फण्ड एकत्र करके एक " जैन - पुरातत्त्व समिति” स्थापित करने का प्रस्ताव जैन समाज के सामने रक्खा था ! किन्तु जैनों पर उसका कुछ भी असर न पड़ा। इस अवस्था में सबसे पहली आवश्यकता जैनपुरातत्त्व के उद्धार के लिये यह है कि जैनों में पुरातत्त्व के प्रति रुचि पैदा की जाय और उन्हें उसका महत्त्व दरसाया जाय। साथ ही जगत के विद्वानों के समक्ष जैनदृष्टि से पुरातत्त्व को दरसाने की भी आवश्यकता है । इनके द्वारा जो भी जैन पुरातत्त्वविषयक श्रेष्ठ कार्य होते हैं उनका परिचय जैनों को कराया जाय । यह सब कार्य बिना एकसंगठित शक्ति के नहीं हो सकता। इसी आवश्यकता को महसूस करके 'श्रीजैन सिद्धान्तभवन' आरा के सुयोग्य संवालकों ने प्रस्तुत त्रैमासिक पत्र का प्रकाशित किया है । इसका उद्द ेश उपर्युक्त कार्य की सिद्धि करना है और अपने पृष्ठों द्वारा प्राचीन जैन-वार्ताविज्ञान अथवा पुरातत्त्व का यथासंभव प्रकाश करना है। उसका प्रत्येक शब्द ज्ञान रत्न की तुलना करे और सच्चे पुरातत्वज्ञ 'जिन' के 'विज्ञान' का प्रभाव दुनियां में फैलावें, यही हमारी हार्दिक भावना है । वह यथानाम ठोक "जैन सिद्धान्त- भास्कर" सिद्ध हो, यही कामना है। साथ ही यह वाञ्छा है कि जैनी शीघ्र ही जैन - पुरातत्त्व के उद्धार करने के महत्त्व को हृदयङ्गम करलें और एक बड़ा-सा फण्ड स्थापित करके जैन- पुरातत्त्वज्ञ एक नहीं अनेक इस भूतल पर घूमते हुए जैनकीर्तियों का उद्धार करनेवाले पैदा कर दें । “जैनभास्कर" के अरुणोदय में इन भावनाओं की सफलता के लिये हम सच्चे पुरातत्त्वज्ञ श्री जिनेन्द्र का पवित्र हृदय से स्मरण करते हैं और हमारी विनय है कि प्रत्येक जैन और
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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