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________________ जैन-पुरातत्त्व (ले०–श्रीयुत बाबू कामता प्रसाद जैन, एम० आर० ए० एस०) . परातत्व' कहते हैं प्राचीन वार्ता विज्ञान को। यह वह विज्ञान है जिसमें अतीत ७ काल का सारा ज्ञान गर्मित है और सच पूछिये तो वही पूर्ण पुरातत्त्वज्ञ हो सकता है जो अतीतकाल को प्रत्येक घटना का ठीक ठीक ज्ञान हमें करा सके। यह सामर्थ्य आजकल के साधारण मनुष्यों में नहीं है। एक जमाना था कि जब यहां पर ऐसे 'पुरातत्त्वज्ञ' मौजद थे जो वर्तमान और भविष्यत्वार्ता के साथ साथ भूतकाल की घटनाओं का भी पूरा ज्ञान एक साथ करा सकते थे। उन्होंने मानवी कमजोरियों पर विजय प्राप्त कर सर्वोत्कृष्ट ज्ञान-सर्वज्ञता प्राप्त की थी और उसी के बल वह अतीत का ज्ञान अथवा यों कहिये पुरातत्व का परिचय पूरा पूरा करा सकते थे। वीर-विजयी होने के कारण ही वह 'जिन' कहलाते थे और संसार में पूज्य दृष्टि से देखे जाते थे। सिन्धुदेश के प्राचीन निवासी उन्हीं 'जिन्' की विनय करते थे, यह बात आज वहाँ के पुरातत्त्व से स्पष्ट है । बौद्ध साहित्य भी 'जिन्' महावीर को सर्वज्ञ और सर्वदर्शी प्रकट करता है।। इन ऐतिहासिक उल्लेखों अथवा दूसरे शब्दों में कहें तो प्रत्यक्षप्रमाणों से आज से लगभग दो-दाई हजार वर्ष और उससे भी पहले एक सर्वज्ञ 'पुरातत्त्वज्ञ' का अस्तित्व यहां प्रमाणित होता है। किन्तु उपरान्त वह विशेषता-सर्वज्ञ होने की कला–यहां के अयोग्य मनुष्यों को नसीब न रही। वह उनके सीमित ज्ञान और परिमित शक्ति के बाहर की वस्तु हो गई। फलतः पुरातत्त्व के वेत्ता भी आज पूरे काबिल नहीं मिलते। जो हैं वह अपनी अपनी दृष्टि और अपने अपने ज्ञान के अनुकूल उसकी उपासना कर रहे हैं और अपने आविष्कारों और खोजों से दुनियां को चकित कर रहे हैं। किन्तु सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि जिस मत में सबसे ज्यादा पूर्ण-विज्ञ 'पुरातत्त्वज्ञ' हुये, उसी में आज एक भी साधारण-सा पुरातत्त्वज्ञ देखने को नहीं मिलता। मेरा मतलब जैनमत से है। 'जिन' भगवान का बताया हुआ मत जिनमत या जैन मत है। और उस मत-सम्बन्धी प्राचीन वार्ता को प्रकट करनेवाले जो भी साधन और सामग्री हो, वह सब "जैन-पुरातत्त्व" है। उसमें जैन ॐ इन्डियन हिस्टॉरीकल क्वार्टी भा० ८ अंक २ और माडर्नरिन्यू, अगस्त १९३२ देखो। + मज्झिमनिकाय ११२३८ व १२-६३; अंगुत्तरनिकाय ३।७४/इत्यादि ।
SR No.529551
Book TitleJain Siddhant Bhaskar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Bhavan
PublisherJain Siddhant Bhavan
Publication Year
Total Pages417
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Siddhant Bhaskar, & India
File Size10 MB
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