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________________ ॐ अहमः । 177 वस्तुतत्त्व-संयोत विश्वतत्त्व-प्रकाशक. dhana वार्षिक मूल्य ६) एक किरण का मूल्य ॥) नीतिविरोषध्वंसी लोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् ।। परमागमस्य बीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः । वर्षे १३ वीरसेवामन्दिर, दरियागंज, देहली सितम्बर किरण ३ . आश्विन वीर नि० संवत् २४८०, वि० संवत २०११ २०११ ) १६५४ समन्तभद्र-भारती देवागम अभावैकान्त-पक्षेऽपि भावाऽपह्नव-वादिनाम् । विरोधान्नोभयैकात्म्यं स्याद्वाद-न्याय-विद्विषाम् । बोध-वाक्यं प्रमाणं न केन साधन-दूषणम् ।। १२॥ अवाच्यतैकान्तेऽप्युक्ति नर्नाऽवाच्यमिति युज्यते ॥१३॥ 'यदि अभावैकान्तपक्षको स्वीकार किया जाय—यह (भावैकान्त और अभावैकान्त दोनोंकी अलग-अलग माना जाय कि सभी पदार्थ सर्वथा असत्-रूप हैं-तो मान्यतामें दोष देखकर ) यदि भाव और अभाव इस प्रकार भावोंका सर्वथा अभाव कहने वालोंके यहाँ दोनोंका एकात्म्य (एकान्त ) माना जाय, तो स्याद्वाद(मतमें ) बोध (ज्ञान) और वाक्य (भागम) दोनोंका न्यायके विद्वेषियोंके यहा-उन लोग के मतमें जो ही अस्तित्व नहीं बनता और दोनोंका अस्तित्व न अस्तित्व-नास्तित्वादि सप्रतिपक्ष धर्मों में पारस्परिक अपेक्षाबननेसे ( स्वार्थानुमान, परार्थानुमान आदिके रूपमें) को न मानकर उन्हें स्वतन्त्र धर्मों के रूपमें स्वीकार करते कोई प्रमाण भी नो बनता; तब किसके द्वारा अपने हैं और इस तरह स्याद्वाद-नीतिके शत्रु बने हुए हैं-वह अभावैकान्त पक्षका साधन किया जा सकता और एकात्म्य नहीं बनता; क्योंकि उससे विरोध दोष आता दूसरे भाववादियों के पक्षमें दूषण दिया जा सकता है-भावैकान्त अभावैकान्तका और अभावैकान्त भावहै-स्वपक्ष-साधन और पर पक्ष-दूषण दोनों ही घटित कान्तका सर्वथा विरोधी होमेसे दोनोंमें एकात्मता घटित न होनेसे प्रभावकान्तपक्ष-वादियोंके पक्षकी कोई नहीं हो सकती। सिद्धि अथवा प्रतिष्ठा नहीं बनती और वह सदोष ठहरता (भाव, अभाव और उभय तीनों एकान्तोंकी है। फलतः अभावकान्तपक्षके प्रतिपादक सर्वज्ञ एवं महान् मान्यतामें दोष देख कर) यदि अवाच्यता (अवक्तव्य) नहीं हो सकते। एकान्तको माना जाय-यह कहा जाय कि वस्तुतत्त्व
SR No.527330
Book TitleAnekant 1954 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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