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सम्पादकीय १. दो नये पुरस्कारोंकी योजनाका नतीजा "आपकी टीका पढ़ी | fourteen dreams जो लिखा
गत वर्ष जुलाई मासकी किरण नं.२ में मैंने सो गया है वह मेरी स्पष्ट गलती है और इसलिए मैं विद्वानों दो नये पुरस्कारोंकी योजना की थी, जिसमें से १२५) का
तथा पाठकोंका क्षमाप्रार्थी हैं। इससे आपको और अन्यको एक पुरस्कार 'सर्वज्ञके संभाव्यरूप' नामक निबन्ध पर था ।
जो दुःख हुआ हो, उससे मुझे बहुत खेद है। 'पउमचरिउ'
के तीसरे खण्डमें उसकी शुद्धि जरूर कर लूगा ।" और दूसरा ३००) रु. का पुरस्कार समन्तभद्रके 'विधेयं वार्य वा' इत्यादि वाक्यको ऐसी विशद व्याख्याके लिये था ३-उत्तम ज्ञानदानके आयोजनका फल जिससे सारा 'तस्व-नय-विलास' सामने भाजाय । निबन्धोंके दो-ढाई वर्षसे उपरका अर्सा हुआ जब एक उदार-हदय लिए दिसम्बर तककी अवधि नियत की गई थी और बादको धर्मबन्धुने, जिनका नाम अभी तक अज्ञात है और जिन्होंने उसमें फर्वरी तक दो महीनेकी और भी वृद्धि कर दी गई अपना नाम प्रकट करना नहीं चाहा, सेठ मंगल जी छोटेलाल थी। साथ ही कुछ खास विद्वानोंको मौखिक तथा पत्रों द्वारा जी कोटावालोंकी मार्फत मेरे पास एक हजार रुपये भेजे थे निबन्ध लिखनेकी प्रेरणा भी की गई थी। परन्तु यह सव और यह इच्छा व्यक्त की थी कि इन रुपयोंसे ज्ञानदानका कुछ होते हुए भी खेदके साथ लिखना पड़ता है कि किसी आयोजन किया जाय अर्थात् जैन-अजैन विद्वानों, विदुषी भी विद्वान या विदुषी स्त्रीने निबन्ध लिखकर भेजनेकी स्त्रियों और उच्च शिक्षाप्राप्त विद्यार्थियों एवं साधारण कृपा नहीं की। पुरस्कारकी रकम कुछ कम नहीं थी और न विद्यार्थियोंको भी जैन धर्म-विषयक पुस्तकें वितरण कीजाएँ । यही कहा जा सकता है कि इन निबन्धोंके विषय उपयोगी. साथ ही खास-खास यूनिवर्सिटियों, विद्यालयों कालिजों और नहीं थे। फिर भी विद्वानोंकी उनके विषयमें यह उपेक्षा लायनेरियोंको भी वे दी जाएं। और सब प्रायोजनको, बहुत ही अखरती है और इसलिए साहित्यिक विषयके कुछ सामान्य सूचनाओंके साथ, मेरी इच्छा पर छोड़ा था। पासकारोंकी योजनाको अागे सरकानेके लिए कोई उत्साह तदनुसार ही मैंने उस समय दातारजी की पुनः अनुमति नहीं मिल रहा है । अतः अब आगे कुछ ग्रन्थोंके अनुसन्धान मँगाकर एक विज्ञप्ति जैनसन्देश और जैनमित्रमें प्रकाशित के लिए पुरस्कारोंकी योजना की गई है। जिसकी विज्ञप्ति की थी, जिसमें प्राप्तपरीक्षा, स्वयम्भूस्तोत्र, स्तुतिविद्या, इसी किरणमें अन्यत्र प्रकाशित है।
युक्त्यनुशासन और अध्यात्मकमलमार्तण्ड आदि पाठ ग्रन्थों
- की सामान्य परिचयके साथ सूची देते हुए, जैन-जैनेत्तर २. डा० भायाणीने भूल स्वीकार की
विद्वानों, विदुषी स्त्रियों, विद्यार्थियों, यूनिवर्सिटियों, कालिजों अनेकान्तकी गत किरणमें 'डा० भायाणी एम० ए० की विद्यालयों और विशाल लायबेरियोंको प्रेरणा की थी कि वे भारी भल' इस शीर्षकके साथ एक नोट प्रकाशित किया गया अपने लिए जिनग्रन्थों को भी मँगाना आवश्यक समझे उन्हें था, जिसमें उनके द्वारा सम्पादित स्वयम्भू देवके 'पउमचरिउ' शीघ्र मँगाले। तदनुसार विद्वानों श्रादिके बहुत से पत्र उस की अंग्रेजी प्रस्तावनाके एक वाक्य Marudexi saw a समय प्राप्त हुए थे, जिनमेंसे अधिकांशको आठों ग्रन्थोंके series of fourteen dreams) पर आपत्ति करते हुए पूरे सेट और बहुतोंको उनके पत्रानुसार अधूरे सेट भी भेजे यह स्पष्ट करके बतलाया गया था कि मूल ग्रन्थ में मरुदेवीके गये। कितनोंने अधिक ग्रन्थोंकी इच्छा व्यक्त की परन्तु उन्हें चौदह स्वप्नोंका नहीं किन्तु सोलह स्वप्नोंको देखनेका उल्लेख जितने तथा जो ग्रन्थ अपनी निर्धारित नीतिके अनुसार भेजने है। साथ ही इस भूलको सुधारने की प्रेरणा भी की गई उचित समझे गये वे ही भेजे गये, शेषके लिए इन्कार करना थी। इस पर डा. साहबने उदारता-पूर्वक अपनी भूल पड़ा। जैसे कुछ लोगोंने अपनी साधारण घरू पुस्तकालय स्वीकार की है और लिखा है कि ग्रन्थके तीसरे खण्डमें के लिये सभी ग्रंथ चाहे जो उन्हें नहीं भेजे जा सके। फिर भी गलतीका संशोधन कर दिया जायगा, यह प्रसन्नताकी बात जिन लोगोंकी मांगें आई उनमेंसे प्रायः सभीको कोई न कोई है। इस विषय में उनके २६ जुलाईके पत्र के शब्द निम्न ग्रन्थ मेजे जरूर गये हैं। इसके सिवाय देश-विदेशके अनेक प्रकार हैं
। विद्वानों, यूनिवर्सिटियों, कालिजों तथा लायनेरियोंको अपना
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