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किरण २ ]
तभी वह अपने पूर्व गौरव-गरिमाको प्राप्त कर सकेगा । इसके लिये समाजके सदाचारनिष्ठ एवं धर्मपरायण विद्वानों को आगे आना चाहिये और ऐसे दूषित धर्माचरणोंकी युक्ति-पुरस्पर खरी-खरी श्रावोचना करके समाजको सजग तथा सावधान करते हुए उसे उसकी भूलोंका परिज्ञान कराना चाहिये तथा
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सखि ! पर्वराज पर्युषण आये ।
[ लेखक - मनु 'ज्ञानार्थी ]
मैं बसे पथ देख रही थी; भादोंकी रङ्गीन धरा पर;
गुरुतम क्षमा मार्दव आर्जव
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भवके वन्धन ढीले करने, पर्वराज प्रियतम पर्युषण ।
• युगकी सोई साध जगाने आये । सखि ! पर्वराज
त्याग तपस्या ब्रह्मचर्यमय,
सत्य शौच सयम आकिंचन
Geosces
सखि ! पर्वराज पर्यूषण आ
अब देखू तो अन्तस्तल में;
रत्न- दशकके ज्योति पुंज से,
स्वच्छ साफ है; पड़े नहीं हैं
गगन अनिका छोर मिलाने आये । सखि ! पर्वराज
परको छोड़ निहारू घर मैं;
कैसे करूँ अतिथिका स्वागत,
अर्ध चढ़ाने के पहले ही;
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भूलोंके सुधारका सातिशय प्रयत्न कराना चाहिये । यह इस समय उनका खास कर्त्तव्य है और बड़ा ही पुण्य कार्य है। ऐसे आन्दोलन- द्वारा सन्मार्ग दिखलानेके लिये अनेकान्तका द्वार खुला हुआ है । वे इसका यथेष्ट उपयोग कर सकते हैं। और उन्हें करना चाहिये । - जुगलकिशोर मुख्तार
काम क्रोध मायाके छींट १
पर मैंने निज अन्तर घट रीते पाये । सखि ! पर्वराज
स्वच्छ नहीं मेरा मानस-गृह १
लौट न जायें मेरे प्रभुवर १
जगी अन्तर- ज्योति जगाने आये । सखि ! पर्वराज
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