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किरण ६ ]
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सोहं सोहं जि हर्ड, पुणु पु पु मुइ । मोक्खहं कारण जोइया, अणु म सो चिंतेइ ||३५ धम्मु मुजिहि इक्कु पर, जइ चेयण परिणाम | अप्पा पर झाइयइ, सो सासय-सुहु-धामु || ३६ ताई भूप विवि, गो इत्थहि ( व्वि तो न समीहि तत्तु तुहुं, जो तइलोय- पहाणु ॥३७ हत्थ दुट्ठ जु देवलि, तह सिव संतु मुणेइ । मूढा देवल देव, भुल्लर काई भमेइ ||३८ जो जाइ ति जाणिय, अणु ग म जागइ कोइ । धंधइ पडियउ सयल्लु जगु एम भांति हु जोइ ॥ ३६ ॥ जो जाइ सो जायिई यहु सिद्धं तहं सारु । सो भाइज्जइ इक्कु पर, जो तइलोयह सारु ॥४०॥ भवसारण णिमित्तइरण, जो बंधिज्जइ कम्मु । सो मुच्चिज्जइ तो जिपरु, जइ लब्भइ जिरण धम्मु ॥४१
दोहा
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जो हु-हु विवज्जयउ, सुद्ध सचेयण भाउ । सो धम्मुवि जाणेहिं जिय, गाणी बोल्लहि साहु ॥४२॥ यहं धारण परिहरिउ, जासु पट्टइ भाउ । सो कम्मे हि बंधयई, जहिं भावइ तहिं जाउ ॥४३ सो दोहउ अप्पारण हो, अप्पा जो मुणेइ । सो झायंत हं परम पड, जिरणवरु एम भणेइ ||४४ उ-उ-रियम करंत यहं जो ण मुरगइ अप्पा | सो मिच्छादिट्ठि हवइ राहु पावहि गिव्वा ॥ ४५ जो अप्पा गिम्मलु मुणइ, वय-तव-सील समाणु । सो कम्मरनउ फुडु करइ, पावइ लहु णिव्वाणु ॥४६ ए अणुवेहा जिण भरणय, गाणी बोलहिं साहु । ताविज्जहिं जीव तुहुँ, जइ चाहहि सिव-लाहु ||४७|| इति वेहा
वीर सेवामन्दिरका नया प्रकाशन
पाठकोंको यह जानकर अत्यन्त हर्ष होगा कि श्राचार्यं पूज्यपादका 'समाधितन्त्र और इष्टोपदेश' नामकी दोनों आध्यात्मिक कृतियाँ संस्कृतटीका के साथ बहुत दिनोंसे अप्राप्य थीं, | तथा मुमुक्षु श्राध्यात्म प्रेमी महानुभावोंकी इन ग्रन्थोंकी मांग होनेके फलस्वरूप वीरसेवामन्दिर ने 'समाधितन्त्र और इष्टोपदेश' नामक ग्रन्थ पं० परमानन्द शास्त्री कृत हिन्दी टीका और प्रभाचन्द्राचार्यकृत समाधितन्त्र टीका और आचार्य कल्प पं० आशाधरजी कृत इष्टोपदेशकी संस्कृत टीका भी साथ में लगा दी है। स्वाध्याय प्रेमियोंके लिये यह ग्रन्थ खास तौर से उपयोगी है । पृष्ठ संख्या सब तीन सौ से ऊपर है । सजिल्द प्रतिका मूल्य ३) रुपया और बिना जिन्दका (२) रुपया है। वाइडिंग होकर ग्रन्थ एक महीने में प्रकाशित हो जायगा । ग्राहकों और पाठकों को अभी से अपना आर्डर भेज देना चाहिये ।
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