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________________ दोहाणुपेहा ( कवि लक्ष्मीचंद) पणविवि सिद्ध महारिसिहिं, जो परभावह मुक्कु । आसउ संसारह मुणहिं, कारणु अएणु ण कोइ । परमाणंद परिठियउ, चउ-गइ-गमणहं चुक्कु ॥ १॥ इम जाणे विणु जी तुहुँ, अप्पा अप्पउ जोइ ।।१८ जइ बीहउ चउ-गइ-गमण, तो जिणउत्तु करेहि। जो परियाणंइ अप्प-परु, जो परभाव चएइ । दो दह अणुवेहा मुणहि, लहु सिव-सुक्खु लहेहि ॥२॥ सो संवर जाणे वि तुहुँ, जिणवर एम भणेइ ॥१॥ अद्भुय असरणु जिणु भणई, संसारु वि दुह-खाणि । जइ जिय संवरु तुहु करहि, भो ! सिव सुक्खु लहेहिं । एकत्तुवि अण्णत्तु मुणि, असुइ सरीरु वियाणि ॥३ अण्णु वि सयलु परिचयहिं, जिणवर एम भणेहिं ॥२०॥ आसव संवर णिज्जर वि, लोया भावविसेसु। सहजाणंद परिट्ठियउं, जे परभाव ण लिति । धम्मुवि दुल्लह बोहिजिय,, भावें गलइ किलेसु ॥४॥ ते सुहु असुहु वि णिज्जरहिं, जिणवरु एम भणंति ॥२१॥ जलबुब्बउ जोविउ चवलु, धणु जोव्वण तडि-तुल्लु। स-सरीरु वि तइलोउ मुणि, अण्णु ण बीयउ कोइ । इसउ वियाणि वि मा गहि माणुस-जम्मु अमुल्लु ॥॥ जहिं आधार परिट्टियउ, सो तुहूं अप्पा ज़ोइ ॥२२॥ जइ णिच्चु वि जाणियइ, तो परिहरहिं अणिच्चु । सो दुल्लह लाहु वि मुणहिं, जो परमप्पय लाहु । . . तं काई णिच्चुवि मुणहिं, इम सुय केवलि वुत्तु ॥६ अण्णु ण दुल्लह किंपि तुहुँ, णाणी बोलहिं साहु ।।२३ असरणु जाणहिं सयलु जिय, जीवहं सरणु ण कोइ। पुणु पुणु अप्पा झाइयइ, मण-वय-काय-ति-सुद्धि । दंसण-णाण-चरित्तमउ, अप्पा अप्पउ जोइ ।।७ राय रोस-वे परिहरि वि, जइ चाहहि सिव-सिद्धि ॥२४॥ दसण-णाण-चरित्तमउ. अप्पा सरणु मुणेइ। राय-रोस-जो परिहरि वि, अप्पा अप्पहिं जोइ। अण्णु ण सरणु वियाणि तुहु जिणवरु एम भणेइ ।। जिणसामिउ एमइ भणई, सहजि उपज्जइ सोइ ।।२।। तइ लो उ वि महु मरणु बुहु, हउं कहु सरण हु जाम । जो जोवइसो जोइयइ, अण्णु ण जोयहिं कोइ । इम जाणे विगु थिरु रहइ, जो तइ लोयकु साम । इम जाणेविणु सम-रहं, सई पहु पइयउ होइ॥ ६॥ पंच पयारह परिभमइ पंचह बंधिउ सोइ । को जोवइ को जोइयइ, अण्णु ण दीसइ कोइ। जाम ण अप्पु मुणेहि फुडु, एम भणंति हु जोइ ॥१०॥ सो अखंडु जिण उत्तियउ, एम भणंतिहु जोइ ।।२७ इकिल्लउ गुणगणनिलउ, बीयउ अस्थि ण कोइ। जो सुण्णु वि सो सुण्णु मुणि, अप्पा सुण्णु ण होइ । मिच्छादंसणु मोहियउ, चउगइ हिंडई सोइ ।।११ सल्लु सहावें परिहवई, एम-भणंति हु जोइ ॥२८ जइ सहसणु सो लहइ, तो परभाव चएइ । परमाणंद परिट्ठियहिं, जो उपजइ कोइ। इकिल्लउ सिव-सुहु लहइ, जिणवरु एम भणेइ ॥१२॥ सो अप्पा जोणेवि तुई, एम भणंति हु जोइ ।।२६| अण्णु सरीरु मुंणेहिं जिय, अप्पउ केवलि अण्णु। सुधु सहावें परिणवइ, परभावहं जिण उत्तु । तो अणु विसयलु विचयहि, अप्पा अप्पउ मण्णु ।। ३।। अप्प सहावें सु णु णवि, इम सुइ केवलि उत्तु ॥३०॥ जिम कट्ठह डहणहं मुणहिं वइसानरु फुडु होइ। अप्प सरूवह लइ रहहि, छंडइ सयल-उपाधि तिम कम्मह डहणहं भविय, अप्पा अण्णु क होइ ॥१४ भणई जोइ जोइहिं भणउ, जीवह एह समाधि ॥३१॥ सत्त धाउमउ पुग्गालु वि, किमि-कुलु-असुइ निवासु। सो अप्पा मुणि जीच तुहुं, केवलणाण सहावु । तहिं णाणिउं किमई करइ, जो छंडइ तव पासु ॥१५॥ भणइ जोई जोईहि जिउ, जइ चाहहि सिवलाहु ॥३. असुइ सरीरु मुणेहिं जइ, अप्पा णिम्मलु जाणि। जोइय जोउ निवारि, समरसताइ परिट्ठियउ । तो असुइ वि पुग्गलु चयहि,एम भणंति हु णाणि ॥१६|अप्पा अण्णु विचारि, भणई जोइहि भणिउ ॥३३ जो स-सहाव चए वि मुणि, परभावहिं परणेइ। जोइ य जोयइ जीओ, जो जोइज्जइ सो जि तुहूं। सो आसउ जाणे हि तुहुं, जिणवर एम भणेइ ॥१७॥ अण्णु ण बीयउ कोइ, भणइं जोइ जोइहिं भणिउ ।३४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527323
Book TitleAnekant 1954 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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