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अनेकान्त
[किरण.
जिनसेनाचार्यका पार्श्वभ्युदय उत्तम कोटिके चित्र काव्य हैं। का यथेष्ट कौशल प्रदर्शित किया है। अमरसिंहगणीकृत दूत काव्यमें मेघदूतकी पद्धति पर लिखे गये वादि- अमरकोष संस्कृतज्ञ समाजमें सर्वोपयोगी और सर्वोत्तम
कोष माना जाता है। उसका पठन-पाठनभी अन्य कोषोंकी चन्द्रका प्रवनदूत, चारित्र सुन्दरका शीलदूत, विनयप्रभका चन्द्रदत, विक्रमका नेमिदूत और जयतिलकसूरिका धर्मदूत
अपेक्षा सर्वाधिक रूपमें प्रचलित है । धनञ्जयकृत धनञ्जयउल्लेखनीय दूत-काव्य हैं।
नाममाला दो सौ श्लोकोंकी अल्पकाय रचना होने परभी इनके अतिरिक्त चन्द्रप्रभसूरिका प्रभावक चरित, बहुत ही उपयोगी है। प्राथमिक कक्षाके विद्यार्थियों के लिये मेरुतुङ्गकृत प्रबन्ध चिन्तामणि (१३०६ ई.) राजशेखर जेन समाजमें इसका खूब प्रचलन है। का प्रबन्ध कोष (१३४२ ई.) आदि प्रबन्ध काव्य ऐति
अमरकोषकी टीका (पाख्यासुधाख्या) की तरह
इस पर भी अमरकीर्तिका एक भाष्य उपलब्ध है । इस हासिक दृष्टिसे बड़ेही महत्व पूर्ण हैं।
'प्रसगमें प्राचार्य हेमचन्द्रविरचित अभिधानचिन्तामणि छन्दशास्त्र
नाममाला एक उल्लेखनीय कोशकृति है। श्रीधरसेनका बन्द शास्त्र पर भी जैन विद्वानोंकी मूल्यवान रचनाएँ विश्वलोचनकोष, जिसका अपर नाम मुक्तावली है एक उपलब्ध हैं। जयकीति (१११२)का स्वोपज्ञ छन्दोऽनु- विशिष्ट और अपने ढंगकी अनूठी रचना है। इसमें ककाशासन तथा प्राचार्य हेमचन्द्रका स्वोपज्ञ छन्दोऽनुशासन रांतादि व्यंजनोंके क्रमसे शब्दोंकी संकलना की गयी है.. महत्वकी रचनाएं हैं । जयकीर्तिने अपने छन्दोऽनुशासनके जो एकदम नवीन है। अन्तमें लिखा है कि उन्होंने माण्डव्य. पिङ्गल, जनाश्रय, · मन्त्रशास्त्रशैतव, श्रीपूज्यपाद और जयदेव आदिके छन्दशास्त्रोंके मन्त्रशास्त्र पर भी जैन रचनाएँ उपलब्ध हैं। विक्रममाधारपर अपने छन्दोऽनुशासनकी रचना की है। । वाग्भट- की ५ वीं शतीके अन्त और बारवीके श्रादिके विद्वान का आन्दोऽनुशासन भी इसी कोटिकी रचना है और इस मल्लिषेणका 'भैरवपद्मावतिकल्प, सरस्वतीमन्त्रकल्प और पर इनकी स्वोपज्ञ टीका भी है। राजशेखरसूरि ज्वालामालिनीकल्प महत्वपूर्ण रचनाएं हैं। भैरव पद्मावति(११४६ वि.)का छन्दःशेखर और रस्नमंजूषा भी उल्लेख- कल्पमें। मन्त्रीलक्षण, सकलीकरण, देण्यर्चन, द्वादशनीय रचनाएं हैं।
रंजिकामन्त्रोद्धार, क्रोधादिस्तम्भन, अङ्गनाकर्षण, वशीइसके अतिरिक्त जैनेतर छन्दः शास्त्र पर भी जैना- करणयन्त्र, निमित्तवशीकरणतन्त्र और गारुडमन्त्र नामक चार्योंकी टीकाएं पायी जाती हैं। केदारभट्टके वृत्तरत्ना
दस अधिकार हैं तथा इस पर बन्धुषणका एक संस्कृत
विवरण भी उपलब्ध है। ज्वालामालिनी कप नामक कर पर सोमचन्द्रगयी, क्षेमहंसगणी, समयसुन्दरउपा
एक अन्य रचना इन्द्र नन्दिकी भी उपलब्ध है जो शक ध्याय, प्रासह और मेरुमुन्दर आदिकी टीकायें उपलब्ध
सं०८६१ में मान्यखेटमें रची गयी थी। विद्यानुवाद हैं। इसी प्रकार कालिदासके श्रतबोध पर भी हर्षकीर्ति,
या विद्यानुशासन नामक एक और भी महत्वपूर्ण रचना है और कांतिविजयगणीकी टीकाएँ प्राप्य हैं। संस्कृत भाषा
जो २४ अध्यायोंमें विभक्त है। वह मल्लिषेणाचार्यकी कृति के छन्द-शास्त्रोंके सिवा प्राकृते और अपभ्रन्श भाषाके छंद
बतलायी जाती है परन्तु अन्तः परीक्षणसे प्रतीत होता है शास्त्रों पर भी जैनाचार्योंकी महत्वपूर्ण टीकाएँ उप
कि इसे मल्लिषेणके किसी उत्तरवर्ति विद्वानने प्रथित किया
है । इनके अतिरिक्त हस्तिमल्लका विद्यानुवादाज तथा कोश
भक्तामरस्तोत्र मन्त्र भी उल्लेखनीय रचनाएँ हैं। कोशके क्षेत्र में भी जैन साहित्यकारोंने अपनी लेखनी
इस ग्रन्थको श्री साराभाई मणिलाल नवाब (1) मांडव्य-पिंगल-जनाश्रय-सैतवाख्य,
अहमदाबादने सरस्वतीकल्प तथा अनेक परिशिष्टोंश्रीपूज्यपाद-जयदेवबुधादिकानां ।
में गुजराती अनुवाद सहित प्रकाशित किया है। छन्दासि वीचय विविधानपि, सस्प्रयोगान् ,
२ जैन साहित्य और इतिहास (श्री पं. नाथूरामछन्दोनुशासनमिदं जयकीर्तिनोक्तम् ॥ .
जी प्रमी) पृ० ४ा।
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