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भावसेन? त्रैविद्यदेवने इसकी रचना की है यह कातन्त्र रूपमाला टीकाके भी रचयिता हैं । (७) रूपसिद्धि - लघुकौमुदीके समान यह एक अल्पकाय टीका है। इसके कर्ता दयापान वि० ११ वीं श० ) मुनि हैं ।
संस्कृत-साहित्यके विकास में जैन विद्वानोंका सहयोग
प्राचार्य हेमचन्द्रका सिद्धम शब्दानुशासन भी महत्व पूर्ण रचना है । यह इतनी आकर्षक रचना रही है कि इसके आधार पर तैयार किये गये अनेक व्याकरण ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं । इनके अतिरिक्त अन्य अनेक जैन व्याकरण ग्रंथ जैनाचार्योंने लिखे हैं और अनेक जैनेतर व्याकरण ग्रन्थों पर महत्वपूर्ण टीकाएँ भी लिखी हैं। पूज्यपादने पा यानी व्याकरण पर शब्दावतार' नामक एक न्यास लिखा था जो सम्प्रति श्रप्राय है। और जैनाचार्यों द्वारा सारस्वत व्याकरण पर लिखित विभिन्न बीस टीकाएं आज भी उपलब्ध हैं ।
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शर्ववर्मा कातंत्र व्याकरण भी एक सुबोध और संक्षिप्त errकरण है तथा इस पर भी विभिन्न चौदह टीकाएँ प्राप्य
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अलङ्कार
अलङ्कार विषय में भी जैनाचार्योंकी महत्वतूर्णं रचनाएँ उपलब्ध हैं । हेमचन्द्र और वाग्भटके काव्यानुशासन तथ बाग्भटका वाग्भटालंकार महत्वकी रचनाएँ हैं श्रजितसेन आचार्यकी अलंकार चिन्तामणि और श्रमरचन्द्रकी काव्यकक्पलता बहुत ही सफल रचनाय हैं ।
जैनेतर अलंकार शास्त्रों पर भी जैनाचार्योंकी तिपय टीकाएँ पायी जाती हैं । काव्यप्रकाश के ऊपर भानुचन्द्रगणि जयनन्दिसूरि और यशोविजयगणि (तपागच्छ की टीकाए उपलब्ध हैं। इसके सिवा दण्डीके काव्यदर्श पर त्रिभुवनचंद्रकृत टीका पायी जाती है और रुद्रटके काव्यालकार पर नमिसाधु (११२१ वि०सं०) के टिप्पण भी सारपूर्ण है। नाटक
नाटकीय साहित्यसृजनमें भी जैन साहित्यकारोंने अपनी प्रतिभाका उपयोग किया है । उभय-भाषा-कविचक्रवर्ति इस्तिमक्ल ( १३ वीं श० ) के विक्रांतकौरव, जयकुमार सुलोचना) सुभद्राहरण और श्रंजनापवनंजय
१ जिनरत्नकोश ( भ० ० रि० इ० पूना ) * जिनरत्नकोश (म० ० रि० इ०, पूना) ।
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उल्लेखनीय नाटक हैं। आदिके दो नाटक महाभारतीय कथा के आधारपर रचे गये हैं और उत्तरके दो रामकथाके आधारपर | हेमचन्द्र आचार्यके शिष्य रामचन्द्रसूरिके अनेक नाटक उपलब्ध हैं जिसमें नलविवाह, सत्यहरिश्चंद्र, कौमुदी मित्रानंद, राघवाभ्युदय, निर्भय भी मण्यायोग आदि नाटक बहुत ही प्रसिद्ध हैं ।
श्रीकृष्ण मिश्र के 'प्रबोध चंद्रोदय' की पद्धतिपर रुपकात्मक ( Allegorical ) शैलीमें लिखा गया यशपाल ( १३ वीं शती० )' का 'मोहराज पराजय' एक सुप्रसिद्ध नाटक है। इसी शैलीमें लिखे गये वादिचन्द्र सूरकृत ज्ञानसूर्योदय तथा यशश्चंद्रकृत मुदितकुमुदचंद्र साम्प्रदायिक नाटक हैं । इनके अतिरिक्त जयसिंहका हम्मीरमदमर्दन नामक एक ऐतिहासिक नाटक भी उपलब्ध है ।
काव्य
जैन काव्य - साहित्य भी अपने ढ़ंगका निराला है । काव्य साहित्य से हमारा आशय गद्य काव्य, महा काव्य, चरित्रकाव्य, चम्पृकाव्य, चित्रकाव्य और दूतकाव्योंसे है । गद्यकाव्य में तिलकमंजरी (१७० ई०) और प्रोडयदेव (वादीभसिंह ११ वीं सदी) की गद्यचिन्तामणि महाकवि बाणकृत कादम्बरी के जोड़की रचनाएँ हैं ।
महाकाव्य में हरिचंद्रका धर्मशर्माभ्युदय, वीरनन्दिका चन्द्रप्रभचरित अभयदेवका जयन्तविजय, अर्हासका मुनिसुव्रत काव्य, वादिराजका पार्श्वनाथचरित्र, भटका नेमिनर्वाणकाव्य मुनिचन्दका शान्तिनाथचरित और महासनका प्रद्युम्नचरत्र, आदि उत्कृष्ट कोटिके महाकाव्य तथा काव्य हैं। चरित्र काव्यमें जटासिंहनन्दिका वर - चरित, रायमल्लका जम्बूस्वामीचरित्र, असग कविका महावीर चरित, आदि उत्तम चरित काव्य माने जाते हैं ।
चम्पू काव्य में आचार्य सोमदेवका यशस्तिलकचम्पू (वि० १०१६) बहुत ही ख्याति प्राप्त रचना है । अनेक विद्वानोंके विचार में उपलब्ध संस्कृत साहित्यमें इसके जोड़ का एकभी थम्पू काव्य नहीं है। हरिश्चन्द्र महाकविका जीवन्धरचम्पू तथा श्रईद्दासका पुरुदेवचम्पू (१३वीं शती) भी उच्च कोटिकी रचनाएँ हैं । चित्रकाव्य में महाकवि धनंजय (८वीं श०) का द्विसन्धान शान्तिराजका पञ्चसंधान, हेमचन्द्र तथा मेघविजयगणीके सप्तसन्धान, जगन्नाथ (१६६६ वि० सं०) का चतुर्विंशति सन्धान तथा
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